Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Apr, 2021 09:57 AM
मन बड़ा प्रबल है, चंद्रमा मन का कारक है। मन का धर्म संकल्प-विकल्प है। मन ही सारे संसार चक्र को चला रहा है। मूलाधार चक्र में सिद्धि-बुद्धि सहित श्रीगणेश विराजमान हैं। श्री गणपति अथर्वशीर्ष मन-मस्तिष्क को शांत रखने की एकमात्र विद्या है जिसके सहारे...
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Ganesh ji path: मन बड़ा प्रबल है, चंद्रमा मन का कारक है। मन का धर्म संकल्प-विकल्प है। मन ही सारे संसार चक्र को चला रहा है। मूलाधार चक्र में सिद्धि-बुद्धि सहित श्रीगणेश विराजमान हैं। श्री गणपति अथर्वशीर्ष मन-मस्तिष्क को शांत रखने की एकमात्र विद्या है जिसके सहारे दुखों की निवृत्ति शीघ्र संभव है।
ॐ स्वरूप- श्रीगणेश आनंदमय, ब्रह्म तथा सच्चिदानंद स्वरूप है। सत्-चित् और और आनंद त्रिगुणों से युक्त गणपति सत्ता, ज्ञान और सुख के रक्षक हैं। ‘अ कार’ गणेश जी के चरण हैं। ‘उ कार’ विशाल उदर और ‘म कार’ मस्तक का महामंडल है, परब्रह्म परमात्मा श्रीगणेश निराकार और विश्वव्यापी हैं। गणेश शब्द में ‘ग कार’ जगद्रूप है तथा ‘ण कार’ ब्रह्मवाचक। इस प्रकार सर्वव्यापक श्रीगणेश परब्रह्म हैं।
ऊंकार यह एकाक्षर स्वरूप भूत, भविष्य तथा वर्तमान सभी ऊंकार स्वरूप है। इस प्रकार गणपति अथर्वशीर्ष में ऊंकार और गणपति दोनों एक ही तत्व हैैै। सफलता के लिए कार्यारंभ के पूर्व मात्र श्रीगणेश का स्मरण सभी बाधाओं को दूर करता है। इनकी कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं। श्री गणेश कष्टों का निवारण कर बिना भेदभाव के सभी का मंगल करते हैं। श्री गणेश कृपा प्राप्ति के लिए श्री गणपति अथर्वशीर्ष प्रमुख सोपान है क्योंकि यह उपनिषदों का सार है, इसके पाठन एवं श्रवण से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
Ganpati Atharvashirsha Path: यह मन-मस्तिष्क को शांत रखने की एकमात्र विद्या है। जीवन के कुछ संकट, विघ्न, शोक एवं मोह का नाश कर अथर्वशीर्ष पारमार्थिक सुख भी प्रदान करता है। अथर्वशीर्ष शब्द में अ+थर्व+शीर्ष इन शब्दों का समावेश है। अ अर्थात अभाव, ‘थर्व’ अर्थात चंचल एवं ‘शीर्ष’ अर्थात मस्तिष्क, चंचलता रहित मस्तिष्क, जिसका अर्थ हुआ शांत मस्तिष्क। मस्तिष्क को शांत रखने की विद्या स्वयं गणेश जी ने ही अथर्वशीर्ष में बताई है।
Shri Atharvashirsha Path Ke Labh: इसके एक, पांच अथवा ग्यारह पाठ प्रतिदिन करने का शास्त्रीय विधान है। अथर्वशीर्ष में मात्र दस ऋचाएं हैं। इसमें प्रमुख रूप से बताया गया है कि शरीर के मूलाधार चक्र में स्वयं गणेश जी का निवास है। मूलाधार चक्र शरीर में गुदा के निकट है। मूलाधार चक्र आत्मा का भी स्थान है। जो उंकार मय है। यहां प्रणव अर्थात ऊंकार स्वरूप गणेश जी विराजमान हैं। मूलाधार चक्र में ध्यान की स्थिति सर्वमान्य होती है, जिससे मन मस्तिष्क शांत रहता है।
कलयुग के व्यस्त एवं भौतिक जीवन में शीघ्र सफलता एवं विघ्नों का नाश करने वाले श्रीगणेश सर्वाधिक पूजनीय देवता हैं। मंगल एवं महत्वपूर्ण कार्यों का शुभारंभ इनकी पूजा-अर्चना से होता है।
वेदों में गणपति का नाम ‘ब्रह्मणस्पति’, पुराणों में ‘श्री गणेश’ तथा उपनिषद ग्रंथों में साक्षात ‘ब्रह्म’ बतलाया है। अथर्वशीर्ष का सार है ‘ऊं गं गणपतये नम:’।
अथर्वशीर्ष के पाठ के बारे में बताया गया है कि इसका जो नित्य पठन करता है वह ब्रह्मीभूत होता है तथा सर्वतोभावेन सुखी भी। वह किसी प्रकार से विघ्नों से बाधित नहीं होता तथा महापातकों से मुक्त हो जाता है क्योंकि यह मन को शांत करने की एकमात्र विद्या है।