Edited By Jyoti,Updated: 31 Oct, 2022 02:09 PM
हिंदू धर्म में यूं तो सबसे अधिक महत्व त्रिदेव का माना गया है, परंतु सर्वप्रथम पूजनीय होने के कारण गणेश जी को अलग ही सम्मान प्राप्त है। खास बात तो ये है कि इन्हें यानि गणपति को सर्वप्रथम पूजे जाने का ये आशीर्वाद किसी और से नहीं बल्कि
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हिंदू धर्म में यूं तो सबसे अधिक महत्व त्रिदेव का माना गया है, परंतु सर्वप्रथम पूजनीय होने के कारण गणेश जी को अलग ही सम्मान प्राप्त है। खास बात तो ये है कि इन्हें यानि गणपति को सर्वप्रथम पूजे जाने का ये आशीर्वाद किसी और से नहीं बल्कि अपने पिता साक्षात भगवान शंकर से मिला है। अतः यही कारण है कि हिंदू धर्म से जुड़ा कोई धार्मिक कार्य हो या किसी प्रकार का कोई मांगलिक कार्य हो सबसे पहले इनका वंदन किया जाता है। इतना ही नहीं देश में स्थित लगभग हर प्राचीन मंदिर में इनकी प्रतिमा विराजमान हैं, और मंदिर के मुख्य देवी-देवता से पहले इनकी आरती की जाती है। आप में से कुछ लोग अब तक शायद ये समझ चुके होंगे कि अब आपको आज यकीनन गणपति बप्पा से जुड़ी ही कोई खास जानकारी देने जा रहे हैं तो आपको बता दें आप बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं। जी हां आपको आज बताने जा रहे हैं गणेश जी के ऐसे मंदिर के बारे में जहां भगवान गणेश जी के तीन नेत्र वाली प्रतिमा विराजमान हैं। जी हां, आप को शायद ये जानकर हैरानी हो रहो होगी क्योंकि हिंदू धर्म के शास्त्रों में तो केवल शिव जी के तीन नेत्रों का वर्णन है। परंतु बता दें राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित इस गणेश मंदिर गणेश जी के तीन नेत्र हैं। आइए जानते हैं मंदिर के बारे में-
यह मंदिर राजस्थान में सवाई माधोपुर जिले में स्थित है, जो विश्व धरोहरों में शामिल रणथम्भौर दुर्ग के भीतर बना है। अरावली और विंध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित दुर्ग में विराजे त्रिनेत्र गणेश की बात ही कुछ निराली है।यह मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है। भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहां भगवान त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु आते हैं। मंदिर का निर्माण महाराजा हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है।इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
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पूरी दुनिया में यही एक मंदिर है जहां भगवान गणेश अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नियों - रिद्धि और सिद्धि एवं दो पुत्रों-शुभ और लाभ, के साथ विराजमान हैं। भारत में चार ही स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते हैं जिनमें यह त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम हैं। इस मंदिर के अलावा सिद्धपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्धपुर सिहोर मंदिर मध्य प्रदेश में स्थित है। कहा जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य, जिन्होंने विक्रम सम्वत् की गणना शुरू की, प्रत्येक बुधवार उज्जैन से चलकर रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु जाते थे।
बता दें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी की प्रतिमा दुनिया की एक मात्र गणेश मूर्ती है जो तीसरा नयन धारण किए दिखाई पड़ती है। गजवंदनम् चितयम् नामक ग्रंथ में विनायक के तीसरे नेत्र का बाखूबी वर्णन किया गया है। इसमें किए उल्लेख के अनुसार भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था अतः इस तरह महादेव की सारी शक्तियां गजानन में निहित हो गईं और वे त्रिनेत्र बने।