Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 May, 2023 09:44 AM
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि गंगा दशहरा के रूप में विख्यात है। यह दिन देव नदी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का दिन है। सैकड़ों वर्षों की कठोर
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Ganga Dussehra 2023: ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि गंगा दशहरा के रूप में विख्यात है। यह दिन देव नदी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का दिन है। सैकड़ों वर्षों की कठोर तपस्या से सूर्यवंशी महाराजा भागीरथ अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे। उन्होंने भगवान शिव एवं ब्रह्मा को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके गंगा जी को स्वर्ग से धरा पर लाने की प्रार्थना की थी।
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यह पर्व पूर्ण रूप से मोक्षदायिनी मां गंगा को समर्पित है। इसी दिन राजा भागीरथ के घोर तप के फलस्वरूप गंगा ने अपने पुनीत जल से शुष्क प्रदेश को उर्वर तथा शस्य श्यामल बनाया था। तभी से गंगा पूजन की यह पावन परंपरा प्रचलित है। राजा सगर के पुत्रों को अपने पावन जल के स्पर्श से मां गंगा ने मोक्ष प्रदान किया था।
गंगा दशहरे के दिन गंगा के पावन जल में स्नान, उपवास तथा दान आदि से मन, वाणी, शरीर के द्वारा किए गए समस्त पापों से निवृत्ति मिलती है। ‘दशहरा’ का अर्थ है 10 प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला। इसका तात्पर्य यह है कि गंगा दशहरा के अवसर पर गंगा में स्नान करने से 3 प्रकार के देह के, 4 प्रकार के वाणी के तथा 3 प्रकार के मानसिक-ये 10 प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।
श्रद्धालु विशेष रूप से हरिद्वार, ऋषिकेश आदि पवित्र तीर्थस्थलों पर एकत्र होकर पावन गंगा जल में स्नान के माध्यम से भगवान शिव, सूर्यदेव की आराधना करते हैं। भागीरथ की प्रार्थना पर ही भगवान शिव गंगा की प्रचंड तीव्र धारा को अपनी जटाओं में धारण करके इसके तीव्र वेग को शांत करके इस अमृत्तुल्य जलधारा को पृथ्वी पर लाए थे इसलिए इस पावन अवसर पर विशेष रूप से भगवान शिव, ब्रह्मा, सूर्य और राजा भागीरथ के परम पुरुषार्थ को स्मरण किया जाता है।
गीता, गंगा तथा गौ का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता तुल्य समझता है। हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष रूप से महत्व है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगा को भी देवनदी कहा जाता है। हमारे ऋषियों ने गंगा को परम पवित्र तथा जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करने वाली महानदी बताया है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में स्वयं को ‘स्रोतसाम् अस्मि जाह्नवी’ अर्थात नदियों में मैं पवित्र नदी गंगा हूं ऐसा कहकर गंगा की श्रेष्ठता को प्रतिपादित किया है। गंगा दशहरा का यह पर्व सम्पूर्ण भारतवासियों के अंदर सांस्कृतिक एकता का संचार करता है।