Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Apr, 2024 12:34 PM
कहते हैं एक बार भगवान शंकर माता पार्वती व नारद जी के साथ भ्रमण के लिए निकले। वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे।
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Gangaur Vrat katha: गणगौर की पौराणिक कथा : कहते हैं एक बार भगवान शंकर माता पार्वती व नारद जी के साथ भ्रमण के लिए निकले। वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे।
उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन को पहुंच गईं। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटीं। थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने-चांदी के थालों में सजाकर सोलह शृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंचीं।
इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा, तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया, अब इन्हें क्या दोगी ?
पार्वती जी बोलीं- प्राणनाथ ! इन स्त्रियों को अपनी उंगली चीरकर रक्त का सुहाग दूंगी, इससे वे मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब इन स्त्रियों ने शिव-पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी उंगली चीर कर उसका रक्त उन पर छिड़क दिया, जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। तब पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र-आभूषणों का परित्याग कर, माया-मोह से रहित हो जाओ और तन-मन-धन से पति की सेवा करो। तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी।