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Gangotri Dham: गोरखा कमांडर ने बनवाया था गंगोत्री मंदिर, दीपावली के दिन बंद होंगे कपाट

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Nov, 2023 12:57 PM

gangotri dham

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। गंगा जी का मंदिर समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

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Gangotri Dham: गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। गंगा जी का मंदिर समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी के शुरुआत में किया गया था। वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर राजघराने द्वारा किया गया। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनों के बीच पतित पावनी गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखों तीर्थयात्री यहां आते हैं। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं।

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उत्तरकाशी से 100 कि.मी. की दूरी पर गंगोत्री धाम स्थित है। माना जाता है कि यह वहीं स्थान है, जहां धरती पर अवतरित होते समय मां गंगा ने सबसे पहले छुआ था। मां गंगा का मंदिर चमकदार सफेद ग्रेनाइट के 20 फीट ऊंचे पत्‍थरों से बना हुआ है। मंदिर समुद्र की सतह से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

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एक कथा के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की तपस्या की थी। माना जाता है कि देवी गंगा ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया।

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ऐसी भी मान्यता है कि पांडवों ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के लिए इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यहां शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है।

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शीतकाल के शुरुआत में जब गंगा का स्तर काफी नीचे चला जाता है तो इस शिवलिंग के दर्शन होते हैं।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओं को फैला कर मां गंगा के वेग को थामने के लिए बैठ गए थे। उन्होंने मां गंगा के जल को अपनी घुंघराली जटाओं में लपेट दिया। प्राचीन काल में यहां मंदिर नहीं था।

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भागीरथी ‌शिला के पास एक मंच था, जहां यात्रा मौसम में तीन चार महीनों के लिए देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को रख दिया जाता था। इन प्रतिमाओं को गांवो के विभिन्न मंदिर श्याम प्रयाग, गंगा प्रयाग, धराली और मुखबा से लाया जाता था और यात्रा में बाद वापस लौटा दिया जाता था।

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गंगोत्रा धाम से करीब 19 कि.मी. की दूरी पर गौमुख स्थित है। यह गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना है। कहा जाता है कि यहां के बर्फीले जल में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है। देवी गंगा के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वी शताब्दी के शुरुआत में किया गया था। मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया। बता दें कि अक्षय तृतीया से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुल गए हैं। वहीं केदारनाथ के कपाट तीन मई को और बद्रीनाथ के कपाट छह मई को खुलेंगे।

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