Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Mar, 2023 10:22 AM
अनादिकाल से गाय का लौकिक और पारमर्थिक क्षेत्र में महत्व रहा है, इसलिए गाय को विश्व की माता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है
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Gau mata: अनादिकाल से गाय का लौकिक और पारमर्थिक क्षेत्र में महत्व रहा है, इसलिए गाय को विश्व की माता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ‘गावो विश्वस्य मातर:’ गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का अधिवास रहता है। गाय परम पूज्नीय है। भगवान का धराधाम पर अवतरण गौ रक्षा के लिए होता है।
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संत प्रवर तुलसी दास ने कहा है कि :
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुजअवतार।
आसुरी सम्पदा के धनी रावण का आदेश था :
जेहि जेहि देस धेनु द्विज पावहु। नगर गांव पुर आग लगावहु।
शुभ आचरण कतहूं नहि होई। विप्र धेनु सुर मान न कोई।
ऐसे विकराल काल में श्री राम का अवतरण हुआ था। गौ माता का दान महादान माना जाता है। भारत में मनुष्य के परलोक गमन के समय गोदान की परम्परा रही है, ताकि प्रियमाण को परमगति प्राप्त हो। गाय की पूंछ को पकड़कर मृतात्मा वैरतरणी पार कर सके। गौ धन को बहुत बड़ा धन माना गया है।
गौ धन गज धन बाजि धन और रतन धन खानि।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि सम्मान।
योगेश्वर भगवान कृष्ण को गोपाल कहा जाता है। गोपाल गो चरण के लिए जाया करते थे। यशोदा माता जब दधि मंथन करती थीं तो कान्हा मक्खन के लिए आ जाते थे।
शुचिता और पावनता के लिए पञ्च गव्य (दूध, दही, घी, गाय का गोबर और गोमूत्र) का प्रयोग होता है। राजा दिलीप को गौ सेवा में मनोवांछित फल की प्राप्ति हुई थी। विश्व भूगोल में डेनमार्क देश आज दुग्ध विज्ञान के लिए विख्यात है। डेनमार्क ‘धेनुमाक’ से बना है।
वात्सल्य रस ‘वत्स’ से बना है। वत्स गाय के बछड़े को कहते हैं। पुत्र को भी इसीलिए वत्स कहा जाता है। गो वत्स को धर्म का रूप माना जाता है। ‘वृषभोधर्म रूप’ सर्वशास्त्रमयी गीता सर्ववेदमयी गीता के महात्म्य में आता है कि समस्त उपनिषद गाय हैं और उन गायों को दुहने वाले भगवान कृष्ण हैं। अर्जुन बछड़ा हैं जो गाय को (पिन्हवा) गीता रूपी दुग्धामृत को पान करने वाले सुधी श्रेष्ठ भक्तजन हैं:
सर्वोपनिषद : गावो दोग्धा गोपाल नंदन:।
पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
भारत में किसी पर्व के अवसर पर यदि कोई स्वजन मर जाता है तो पर्व नहीं मनाया जाता था लेकिन उस गमी के पर्व पर गाय बछड़े को जन्म दे देती थी तो पर्व सोल्लास मनाया जाने लगता था।
यदि विश्व में समृद्धि और शांति स्थापित करनी है तो गौवध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। कृषि कार्य में गोवंश के प्रयोग को अधिकाधिक महत्व देना चाहिए। इससे ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का मार्ग प्रशस्त होगा। स्वर्णयुग का पुनरागमन होगा। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है :
श्याम सुरभि पय विसद अति गुनद करहिं जेहि पान।
गिरा ग्राम्य सिय राम यश गावङ्क्षह सुनहिं सुजान।