Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jul, 2023 09:12 AM
एक राजा महात्मा बुद्ध का बड़ा भक्त था। उसने सोचा कि प्रजा को सुखी रखना उसका कर्तव्य है, इसलिए उसने महल के द्वार पर स्वर्ण मुद्राओं
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Gautama buddha story: एक राजा महात्मा बुद्ध का बड़ा भक्त था। उसने सोचा कि प्रजा को सुखी रखना उसका कर्तव्य है, इसलिए उसने महल के द्वार पर स्वर्ण मुद्राओं से भरे थाल रखवा दिए और घोषणा करवा दी कि प्रत्येक व्यक्ति दो-दो मुट्ठी मुद्राएं ले जाए। यह सुनते ही सभी अपना-अपना काम छोड़कर स्वर्ण मुद्राएं लेने राजमहल की ओर चल पड़े। लोग महल के द्वार पर आते और दो-दो मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं लेकर चले जाते।
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भगवान बुद्ध एक ब्रह्मचारी के रूप में वहां पहुंचे। उन्होंने दो मुट्ठी मुद्राएं उठाईं और चल दिए। कुछ दूर आगे जाने के बाद वह लौट आए। उन्होंने मुद्राएं वहीं पटक दीं।
राजा ने इसका कारण पूछा तो बोले, ‘‘सोचा, शादी कर लूं। पर इतनी मुद्राओं से कैसे काम चलेगा ?
राजा बोला, ‘‘दो मुट्ठी और ले लो।’’ बुद्ध ने दो मुट्ठी मुद्राएं और उठा लीं और चल दिए।
थोड़ी देर बाद वह फिर लौट आए और बोले, ‘‘शादी करूंगा तो घर भी चाहिए।’’
राजा बोला, ‘‘दो मुट्ठी और ले लो।’’
महात्मा बुद्ध मुद्राएं लेकर गए मगर पुन: लौट आए और बोले, ‘‘बच्चे होंगे, तो उनका भी तो खर्चा होगा।’’
राजा ने कहा, ‘‘दो मुट्ठी और ले लो।’’ यह सुनकर भगवान बुद्ध अपने असली रूप में आ गए। राजा ने उन्हें प्रणाम किया।
बुद्ध बोले, ‘‘राजन एक बात जान लो। यदि तुम्हारी प्रजा दूसरों के सहारे जीने लगेगी तो उसका कभी कल्याण नहीं होगा। उसे परिश्रम करके आजीविका पाने का रास्ता दिखाओ तभी प्रजा सुखी रहेगी और उसका कल्याण भी होगा।
भगवान बुद्ध की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया।