Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Aug, 2024 04:06 AM
मंत्रों में भगवान नाम वाचक मंत्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं। दुर्गम मार्गों को सुगम करने के लिए जिस प्रकार नदी-नालों पर सेतु बनाए जाते हैं, उसी प्रकार
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Gayatri Jayanti 2024: मंत्रों में भगवान नाम वाचक मंत्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं। दुर्गम मार्गों को सुगम करने के लिए जिस प्रकार नदी-नालों पर सेतु बनाए जाते हैं, उसी प्रकार के मंत्र सब बाधाओं से मुक्ति तथा पूर्ण शक्ति प्रदान करते हैं। आज के युग में जब धार्मिक जीवन क्षीण पड़ रहा है तब भी गायत्री मंत्र का जाप धार्मिक कार्यों में प्रभावशाली बना हुआ है।
Gayatri Mantra गायत्री मंत्र: ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
ॐ (परब्रह्म का प्रतीक)
भू (भूलोक या पृथ्वी)
र्भुव: (अंतरिक्ष)
स्व: (स्वर्गलोक)
तत् (वह परमात्मा)
सवितुर (ब्रह्म)
वरेण्यं (आराधना के योग्य)
भर्गो (पापों और अज्ञानता को दूर करने वाला)
देवस्य (देदीप्यमान-चमकीला)
धीमहि (हम ध्यान करते हैं)
धियो (बुद्धि मेघा)
यो (जो)
न: (हमारा)
प्रचोदयात् (प्रकाशित करें-प्ररेणा करें)।
अर्थात- हम सब उस ब्रह्म के तेज का ध्यान करते हैं जिन्होंने इस ब्रह्मांड की रचना की, जो आराधना के योग्य हैं, जो ज्ञान और प्रकाश की मूर्तिमत्ता हैं, जो समस्त पापों और अज्ञानता को दूर करते हैं। वे हमारी बुद्धि को प्रकाशित करें। गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, ये 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं। इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सर्वमंगलकारी तथा सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला बताया है।
गायत्री मंत्र का प्रभाव कुछ ऐसा है कि इसके जाप से तमाम कष्ट प्रभावहीन हो जाते हैं। गायत्री मंत्र का प्रयोग हर क्षेत्र में सफलता के लिए सिद्ध माना गया है। मंत्रों की ध्वनि से असीम शांति की अनुभूति होती है। यह जीवन को हर ओर से खुशहाल बना सकता है। मंत्रोच्चारण में विशेष कंपन होता है। वैदिक दर्शन शास्त्र यह सिद्ध करते हैं कि जहां कोई कार्य है वहां कंपन है और जहां कंपन है, वहां शब्द अवश्य होता है।
इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र और देवता ‘सवितृ’ हैं। यह गायत्री नाम से लोक प्रसिद्ध है एवं सवितृ देव से संबंद्ध होने के कारण यह सावित्री भी कहलाता है। इस मंत्र की अधिष्ठात्री देवी पंचमुखी और दस भुजाओं वाली गायित्री देवी हैं। चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पत्ति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं, इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहते हैं।
There are three stanzas in this mantra इस मंत्र में तीन पद हैं :
ईश्वर का दिव्य चिंतन
ईश्वर को अपने अंदर धारण करना
सद्बुद्धि की प्रेरणा के लिए प्रार्थना
आदि कवि वाल्मीकि जी ने रामायण के चौबीस सहस्त्र श्लोकों की रचना गायत्री के चौबीस वर्णों को लेकर की। भारत के ऋषियों की तपस्या का चरम फल वह मां गायत्री ही हैं जो वेदों में उद्घोषित हैं, जिसे लेकर समस्त उपनिषदों की साधना चलती है।
गायत्री मंत्र में तीन वस्तुओं का पता लगता है- एक केंद्र अनंत ब्रह्मांड है, दूसरा जीव का केंद्र जीवन है और तीसरा इन दोनों के बीच अंतर संबंध है। इन तीन तत्वों के ऊपर ही विश्व के समस्त दर्शन और विज्ञान आधारित हैं।
इसी कारण श्री गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- ‘गायत्री कुंद सामहम’ अर्थात ‘छंदों में मैं गायत्री हूं।’