Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Aug, 2024 06:28 AM
प्रात:काल मध्याह्नकाल एवं सायंकाल की अधीश्वरी भगवती गायत्री हैं। देवी गायत्री की नित्य संध्या काल में उपासना ही सम्पूर्ण वेदों का सार है। ब्रह्मा आदि देवता भी संध्याकाल में भगवती गायत्री का ध्यान और जप किया करते हैं। वेदों के द्वारा भी नित्य इन्हीं...
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Gayatri Jayanti 2024: प्रात:काल मध्याह्नकाल एवं सायंकाल की अधीश्वरी भगवती गायत्री हैं। देवी गायत्री की नित्य संध्या काल में उपासना ही सम्पूर्ण वेदों का सार है। ब्रह्मा आदि देवता भी संध्याकाल में भगवती गायत्री का ध्यान और जप किया करते हैं। वेदों के द्वारा भी नित्य इन्हीं का जप होता है। अतएव गायत्री को वेदोपास्या कहा गया है।
Importance and effect of Gayatri Mantra: गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पत्ति मानी जाती है इसलिए वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। जिस कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्या भी इन्हें ही माना जाता है इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं। इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है। गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं। अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, र्कीत, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
Gayatri Jayanti गायत्री का अवतरण
When is gayatri jayanti 2024 गायत्री जयंती कब मनाई जाए ? इस प्रश्न के उत्तर में विभिन्न मत हैं।
सनातन पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी पर मां गायत्री का अवतरण हुआ था। कहते हैं गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इस पावन तिथि पर पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था। तभी से ज्येष्ठ माह की एकादशी पर गायत्री जयंती मनाई जाने लगी। बहुत सारे स्थानों पर ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा की तिथि पर गायत्री जयंती मनाए जाने का विधान है।
माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह ऋषि विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पहुंचाया।
अन्य मान्यता के अनुसार हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मां गायत्री का अवतरण दिवस होता है इसलिए इसे गायत्री जयंती के रूप में मनाए जाने का विधान है। मां गायत्री भारतीय संस्कृति की जननी हैं।
Importance and effect of Gayatri Mantra आइए जानें, इस मत में क्या कहते हैं शास्त्र
देवर्षि नारद : ‘गायत्री भक्ति का ही स्वरूप है। जहां भक्ति रूपी गायत्री हैं वहां श्री नारायण का निवास होने में कोई संदेह नहीं करना चाहिए।’
ऋषि विश्वामित्र : ‘गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मंत्र नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से तीन वर्ष तक गायत्री जाप करता है वह ईश्वर को प्राप्त करता है। जो द्विज दोनों संध्याओं में गायत्री जपता है वह वेद पढऩे के फल को प्राप्त करता है। अन्य कोई साधना करे या न करे केवल गायत्री जप से भी सिद्धि पा सकता है। नित्य एक हजार जप करने वाला पापों से वैसे ही छूट जाता है, जैसे केंचुली से सांप छूट जाता है।
महर्षि व्यास : जिस तरह पुष्प का सार शहद, दूध का सार घृत है उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है। सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के समान है। गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है। जो गायत्री छोड़कर अन्य उपासनाएं करता है वह पकवान छोड़कर भिक्षा मांगने वाले के समान मूर्ख है।’
चरक ऋषि : जो ब्रह्मचर्य गायत्री देवी की उपासना करता है और आंवले के ताजे फलों का सेवन करता है वह दीर्घजीवी होता है।