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गीता ज्ञानः जानें, कैसे करते हैं भगवान स्वयं अपने भक्त की रक्षा

Edited By Lata,Updated: 08 Aug, 2019 02:55 PM

geeta gyan in hindi

हिंदू धर्म में गीता को प्रमुख ग्रंथों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि जो लोग इसका हर रोज़ अध्यन करते हैं,

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हिंदू धर्म में गीता को प्रमुख ग्रंथों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि जो लोग इसका हर रोज़ अध्यन करते हैं, उन्हें अपने जीवन में आने वाली हर मुसीबत से छुटकारा मिलता है। या फिर यूं कहे कि उन्हें कभी किसी चीज़ का भय नहीं रहता है। गीता में धर्म का उपदेश मिलने के साथ-साथ जीवन जीने की कला के बारे में भी बताया गया है। महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने ऐसी-ऐसी बातें अर्जुन को बताई, जोकि हर आम इंसान के लिए लाभदायक हैं। इसलिए हर व्यक्ति को गीता पा पाठ जरूर पढ़ना चाहिए। चलिए आगे जानते हैं गीता में बताए उन दो महत्वपूर्ण श्लोकों के बारे में, जिनसे आप जान पाएंगे कि कैसे भगवान खुद करते हैं अपने भक्त की रक्षा। 

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अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते। 
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। गीता 9/22।। 
अर्थ :
जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मुझे पूजते हैं, ऐसे नित्ययुक्त साधकों के योगक्षेम को मैं स्वयं वहन करता हूं। इस श्लोक का मतलब है कि जिस इंसान के मन में हर समय केवल परमात्मा का ही वास हो और उस व्यक्ति के लिए उनसें बढ़कर दुनिया में अन्य कोई न हो, वही भक्त है। 

भगवान इस श्लोक के माध्यम से कह रहे हैं कि जो भक्त केवल मेरा ही हर पल चिंतन करते हुए अन्य कोई भी भाव को अपने अंदर नहीं लाता और केवल मेरा ही पूजन करता रहता है। ऐसे साधकों की साधना की रक्षा मैं स्वयं करता हूं।
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त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। 
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।गीता 9/20|| 
अर्थ:
तीनों वेदों के ज्ञाता, सोमरस पीने वाले, पापरहित पुरुष यज्ञों द्वारा मुझे पूजकर स्वर्गलोक को पाने की कामन करते हैं। वे अपने पुण्यफल से स्वर्गलोक पाकर वहां देवताओं के दिव्य सुखों को भोगते हैं।

इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि तीनों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर जब साधक अंतर्मुखी यात्रा शुरू करता है, तब वह सहस्रार चक्र से निकलने वाले आनंद रूपी सोमरस का पान करने लगता है। इससे वह पाप से संबंधित कार्यों को करने से बचा रहता है। इस तरह वह कल्याण के मार्ग का अनुसरण करता हुआ निरंतर दूसरों की भलाई रूपी यज्ञ और हवन करता है और परमात्मा को भजता है और स्वर्गलोक को पाने की प्रार्थना करता है। इस तरह वह पुण्यफल पाकर स्वर्गलोक को जाता है और वहां देवताओं के दिव्य सुखों को भोगने लगता है।

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