श्री कृष्ण ने मेघ देवता की पूजा बंद करा किया था अनूठी परंपरा का आरंभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Oct, 2024 09:46 AM

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Govardhan Katha 2024: गोवर्धन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का धाम है। यहां स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा पूजित गिरिराज महाराज विराजमान हैं। आज गोवर्धन महाराज पूरे विश्व में पूजे जाते हैं। इनकी तलहटी की रज और कण-कण में लीलाओं का वास है। पुराणों के अनुसार...

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Govardhan Katha 2024: गोवर्धन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का धाम है। यहां स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा पूजित गिरिराज महाराज विराजमान हैं। आज गोवर्धन महाराज पूरे विश्व में पूजे जाते हैं। इनकी तलहटी की रज और कण-कण में लीलाओं का वास है। पुराणों के अनुसार द्वापर युगीन गोवर्धन पर्वत आज भी अपने विशालकाय रूप में खड़ा है। जब-जब सोलह कला अवतारी श्रीकृष्ण की अवतरित लीलाओं का अनुसरण करते हैं तो भगवान कृष्ण की गोवर्धन पूजा और गोवर्धन पर्वत को धारण कर ब्रजवासियों की रक्षा का संकल्प सामने आता है।

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श्रीकृष्ण ने स्वयं गोवर्धन पर्वत को ईश्वरीय स्वरूप प्रदान किया। कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने भाव में ब्रजवासियों के संग एक रूप में पूजत और दूजे रूप में पुजाय कर गोवर्धन पर्वत को देवता तुल्य माना है। आस्था और विश्वास की अनूठी कड़ी में ईश्वरीय स्वरूप गोवर्धन पर्वत के करोड़ों आस्थावान भक्त हैं। सनातन धर्म में गोवर्धन पर्वत को रक्षा कर मनोकामना पूरी करने वाला देवता बताया है।

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दीपावली के ठीक एक दिन बाद देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में गोवर्धन जी की पूजा होती है।  गोवर्धन पूजा के मुख्य केंद्र गोवर्धन धाम में विराजमान गोवर्धन पर्वत की पूजा क्यों होती है, इसके पीछे सोलह कला अवतारी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अनूठा वर्णन है। गोवर्धन पूजा अन्नकूट के रूप में इन्द्र का गर्व चूर करने के लिए गोवर्धन पूजा का आयोजन श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से करवाया था। यह आयोजन अन्नकूट पूजन के रूप में किया जाता है। इसकी शुरुआत द्वापर युग से मानी जाती है। उस समय लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे। अनेकों प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाते थे। कहते हैं कि मेघ देवता राजा इंद्र का पूजन कर प्रसन्न करने के लिए ऐसा आयोजन करते थे।

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे तो वह यह देखकर हैरान हो गये कि गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं। तभी कृष्ण नाराज हो जाते हैं और इंद्र की पूजा को बंद कराकर गिरिराज महाराज की पूजा कराते हैं। उसी परम्परा में आज गोवर्धन नाथ पूजे जाते हैं।

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