Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jan, 2023 12:10 PM
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घटना उस समय की है जब पंडित गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। एक बार पंत ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था।
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घटना उस समय की है जब पंडित गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। एक बार पंत ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उस बिल में 6 रुपए 12 आने लिखे हुए थे। पंत जी ने बिल को पास करने से मना कर दिया।
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जब उनसे इस बिल पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, ‘‘सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चों से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद पे करना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है। ’’
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अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। ऐसे में इसे पास करने से कोई गुनाह नहीं होगा। उस दिन चाय के साथ नाश्ता पंत की बैठक में आया था। कुछ सोच कर पंत ने अपनी जेब से रुपए निकाले और बोले,
‘‘चाय का बिल पास हो सकता है लेकिन नाश्ते का नहीं। नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता। उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं।’’ यह सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए।
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इसके बाद अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकारी नियमों की अवहेलना नहीं की जाएगी। यह सुनकर पंत जी संतुष्ट हुए और अपने काम में लग गए।
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