Edited By Prachi Sharma,Updated: 02 Jun, 2024 07:49 AM
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। भगवान भोलेनाथ का यह प्रसिद्ध मंदिर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर वेरूल नामक गांव में है। इस ज्योतिर्लिंग को घुष्मेश्वर भी कहा जाता है। शिवमहापुराण में भगवान
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Grishneshwar Jyotirlinga: घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। भगवान भोलेनाथ का यह प्रसिद्ध मंदिर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर वेरूल नामक गांव में है। इस ज्योतिर्लिंग को घुष्मेश्वर भी कहा जाता है। शिवमहापुराण में भगवान शिव के इस 12वें तथा अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है। घृष्णेश्वर मंदिर 13वीं-14वीं शताब्दी में मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान कई बार नष्ट हुआ और अनेक बार इसका पुननिर्माण किया गया। 16वीं सदी मेंं वेरूल के मालोजी भोसले (शिवाजी महाराज के दादा) ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद इंदौर की रानी अहल्याबाई होलकर ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण करवाया।
ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा
देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उनकी कोई संतान नहीं थी। सुदेहा ने अपने पति का विवाह छोटी बहन घुष्मा से करवा दिया, जो भगवान शिव की परम भक्त थी। वह रोज 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करती और उन्हें तालाब में विसर्जित कर देती।
समय के साथ छोटी बहन की खुशी बड़ी बहन सुदेहा से देखी नहीं गई और एक दिन उसने छोटी बहन के पुत्र की हत्या करके तालाब में फैंक दिया। पूरा परिवार दुख से घिर गया पर शिव भक्त घुष्मा को अपने आराध्य भोलेनाथ पर पूरा भरोसा था। वह प्रतिदिन की तरह शिव पूजा में लीन रही। एक दिन उसे उसी तालाब से अपना पुत्र वापस आता दिखा। अपने मृत पुत्र को फिर से जीवित देख घृष्णा काफी खुश थी। कहा जाता है कि उसी समय वहां शिव जी प्रकट हुए और उसकी बहन सुदेहा को दंड देना चाहा लेकिन घुष्मा ने शिव जी से बहन को क्षमा कर देने की विनती की। इस ज्योतिर्लिंग के करीब एक तालाब है, भक्त जिसके दर्शन करते हैं।
सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर
घृष्णेश्वर तीर्थ औरंगाबाद जिले में एलागंगा नदी और एलोरा गुफाओं के करीब स्थित है। यहां की यात्रा शिवालय तीर्थ, ज्योतिर्लिंग और लक्ष्य विनायक गणेश के दर्शन से पूर्ण होती है। ये सभी तीर्थस्थल 500 मीटर के दायरे में हैं। बाहर से देखने पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग सामान्य मंदिरों की भांति दिखाई देता है लेकिन अंदर जाकर देखने से इसकी महत्ता और भव्यता स्पष्ट होती है। शिवालय तीर्थ में ऋषि-मुनि, महर्षि और सभी तीर्थों के अलग-अलग साधना स्थल आज भी मौजूद हैं।
इनकी सजावट देखते ही बनती है। यहां के पत्थरों को बहुत ही सुंदर शैली में तराशा गया है। ऊपर से सरोवर को देखने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। घृष्णेश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिरों की वास्तुकला शैली और संरचना का एक उदाहरण है। मंदिर का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है। इसमेंं तीन द्वार हैं। गर्भगृह के ठीक सामने 24 स्तम्भों से निर्मित विस्तृत सभामंडप है। भक्तगण यहीं से दर्शन लाभ लेते हैं। इसके अंदर जाने के लिए पुरुषों को उघड़े बदन जाना होता है। यह भारत मेंं सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है।
यह पूरा क्षेत्र जागृत है, इसीलिए इस क्षेत्र में कई धर्मावलम्बियों के स्थान हैं। बौद्ध भिक्षुओं की एलोरा गुफाएं, जनार्दन महाराज की समाधि, कैलाश गुफा, सूर्य कुंड-शिव कुंड नामक दो सरोवर यहीं स्थित हैं। दौलताबाद का किला पहाड़ी पर है, जिसमेंं धारेश्वर शिवलिंग है। इसी के पास एकनाथजी के गुरु श्रीजनार्दन महाराज की समाधि भी है। नाथ पंथ वाले तो कैलाश मंदिर को ही घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।
भगवान सूर्य द्वारा पूज्य ज्योतिर्लिंग
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है। कहा जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग और देवगिरि दुर्ग के बीच एक सहस्रलिंग पातालेश्वर (सूर्येश्वर) महादेव हैं, जिनकी आराधना सूर्य भगवान करते हैं इसीलिए यह ज्योतिर्लिंग भी पूर्वमुखी है। सभी जगह 108 शिवलिंग का महत्व बताया जाता है, किंतु यहां पर 101 का महत्व है। 101 पार्थिव शिवलिंग बनाए जाते हैं और 101 ही परिक्रमा की जाती हैं।