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Gudi padwa: हिंदू नववर्ष का शुभारंभ है गुड़ी पड़वा, कथा के साथ जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Mar, 2025 12:39 PM

gudi padwa

Gudi padwa 2025: महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। मराठी समुदाय के लोग आज के दिन बांस की लकड़ी को लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल के कलश को उल्टा रखते हैं। इसको केसरिया रंग के पताके और नीम की पत्तियों से सजाया...

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Gudi padwa 2025: महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। मराठी समुदाय के लोग आज के दिन बांस की लकड़ी को लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल के कलश को उल्टा रखते हैं। इसको केसरिया रंग के पताके और नीम की पत्तियों से सजाया जाता है। फिर घर पर सबसे ऊंची जगह पर लगा देते हैं। अलग-अलग जगह में इसे विभिन्न तरह के नामों से जाना जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है। कर्नाटक में इस पर्व को युगाड़ी नाम से जाना जाता है।

Gudi padwa

Significance of Gudi Padwa गुड़ी पड़वा का महत्व: गुड़ी पड़वा के त्यौहार को हिंदू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा का मतलब होता है चंद्रमा का पहला दिन। गुड़ी पड़वा को वर्ष प्रतिपदा और युगादि के नाम से भी जाना जाता है। आज का ये दिन बहुत ही खास होता है क्योंकि आज से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। मुख्य रूप से गुड़ी पड़वा का त्यौहार महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का मतलब अगली फसल वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। तो आइए जानते हैं गुड़ी पड़वा के बारे में कुछ रोचक बातें।

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Beliefs of Gudi Padwa गुड़ी पड़वा से जुड़ी प्रचलित मान्यताएं : कहते हैं आज के दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी कहा जाता है।  

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मराठी समुदाय के लोग इस दिन को महान राजा छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।

आज के दिन महान ज्योतिषाचार्य और गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। इस तिथि पर चंद्रमा के चरण का पहला दिन होता है।
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Legend of Gudi Padwa गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा: मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में दक्षिण भारत में राजा बली के शासन के समय जब प्रभु श्री राम माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए लंका की तरफ जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात सुग्रीव के साथ हुई। सुग्रीव ने प्रभु श्री राम को बाली के आतंक के बारे में सारी बात बताई। तब प्रभु श्री राम ने बाली का वध कर उसके आतंक से सुग्रीव को मुक्त कराया। कहते हैं उसी दिन से दक्षिण में गुड़ी पड़वा के तौर पर मनाया जाता है तथा विजय पताका फहराई जाती है।

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