Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Aug, 2017 10:17 AM
आज श्री गुग्गा नवमी पर्व है। पंजाब के नकोदर में गुग्गा जाहिर पीर और हिमाचल के बिलासपुर जिले में ये उत्सव मेले के रूप में मनाया जाएगा। जो लिख दिया विधाता ने उसे कोई मिटा नहीं सकता। माता बाछल की लाख
आज श्री गुग्गा नवमी पर्व है। पंजाब के नकोदर में गुग्गा जाहिर पीर और हिमाचल के बिलासपुर जिले में ये उत्सव मेले के रूप में मनाया जाएगा। जो लिख दिया विधाता ने उसे कोई मिटा नहीं सकता। माता बाछल की लाख मन्नतों के बाद भी गुग्गावीर ने उनकी एक न मानी और देखते ही देखते जाहरवीर धरती में समा गए। उनकी ध्वजा और भाला ही बाहर दिख रहा था। कहा जाता है कि ददरेड़ा नगरी में रामा नाम के ग्वाले ने गुग्गा जी की सबसे प्यारी गाय सुरा को गोरख टिल्ले यानी जहां गुग्गा वीर समाए थे, वहां दूध पिलाते देखा था। ग्वाले ने यह बात गुग्गा जी की पत्नी श्रीयल को बताई। इसके बाद श्रीयल ने वहां नित्य रोना पीटना शुरू कर दिया।
श्रीयल के नित्य ऐसा करने से वहां की धरती फटी और कहा जाता है कि श्रीयल भी धरती के गर्भ में समा गई। यह स्थान आज भी श्रीयल जाल के नाम से मशहूर है। प्रदेश के अन्दर गुग्गा पूजन का एक खास महत्व है। सर्पों व नागों का 100 मण जहर पीने के कारण उन्हें जाहरवीर कहा जाता है। पूरे भारत वर्ष की जनता उस समय भी गुग्गा राणा को देवता की तरह पूजती थी। प्राचीन समय से चली आ रही यह परम्परा आज भी उसी तरह कायम है। मुसलमान भी गुग्गावीर के चमत्कारों की गाथा सुनकर उन्हें पीर पैगम्बरों की तरह पूजते हैं। गुग्गा जी की मैड़ी से एक रोचक घटना जुड़ी है।
कहा जाता है कि दिल्ली का बादशाह नौशेबरा बगावत दबाने के कारण गुग्गा मैड़ी के रास्ते अपनी फौज लेकर निकलने लगा तो गुग्गा से बादशाह नौशेबरा ने मन्नत मांगी कि हे भगवान जाहरवीर अगर मैं बगावत दबाने में कामयाब हुआ तो आपके आराम के वास्ते एक आलीशान पक्की दरगाह बनाऊंगा लेकिन कामयाबी मिलने के बाद बादशाह भूल गया और जैसे ही उसकी फौज मैड़़ी के आगे बढऩे लगी तो बड़े-बड़े सर्पों को देख बादशाह नौशेबरा भयभीय हो गया। उसने पलटन को हुक्म दिया कि पीर महाराज के लिए अभी दरगाह बनवानी होगी। कहा जाता है कि भादरा से मैडी भवन तक लाइन लगाकर पलटन को खड़ा कर दिया गया और गुग्गा मैड़ी भवन तैयार होते ही सभी नाग देवता धरती की गोद में समा गए। दूर-दूर से लोग इस मैड़ी भवन में अपना मस्तक नवा कर अपने-अपने घरों को लौटते हैं, उनमें से किसी की भी मृत्यु आज तक सांप के काटने से नहीं हुई है, इसलिए गुग्गावीर की नाग देवता के रूप में भी आराधना की जाती है।