Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 May, 2024 07:49 AM
एक साहसिक एवं सुखद यात्रा, जिसमें पहाड़ के उतार-चढ़ाव, झरने, नदियां, जंगल सब कुछ मिलता है। यह यात्रा है बिहार के रोहतास जिले के चेनारी प्रखंड
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Cave of Baba Gupteshwar Mahadev: एक साहसिक एवं सुखद यात्रा, जिसमें पहाड़ के उतार-चढ़ाव, झरने, नदियां, जंगल सब कुछ मिलता है। यह यात्रा है बिहार के रोहतास जिले के चेनारी प्रखंड में गुप्ताधाम की। कैमूर पहाड़ी पर गुफा में स्थित गुप्ताधाम में बने गुप्तेश्वर महादेव मंदिर की ख्याति शैव केन्द्र के रूप में है। भगवान शिव त्रिदेवों में से एक हैं और उनके इस धाम तक पहुंचने का रास्ता काफी कठिन है। जिस तरह से लोग तमाम मुश्किलों को पार करने के बाद केदारनाथ और बद्रीनाथ दर्शन के लिए पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह से भक्त भगवान शिव के इस अनोखे धाम तक पहुंचते हैं।
गुफा में करते हैं निवास
इस मंदिर की जिस गुफा में भगवान शिव विराजते हैं, वह कितनी पुरानी है, इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। हालांकि, इसकी बनावट को देख कर कहा जाता है कि यह गुफा मानवों द्वारा निर्मित है। मान्यता के अनुसार गुप्ताधाम के मंदिर की गुफा में जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
ऑक्सीजन की कमी
जिस तरह से केदारनाथ की यात्रा के दौरान कई लोगों में ऑक्सीजन की कमी देखने को मिलती है, उसी तरह से इस धाम की यात्रा करने के दौरान लोगों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। बताया जाता है कि साल 1989 में ऑक्सीजन की कमी से यहां पर करीब आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई थी लेकिन इसके बाद भी यहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।
पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा के द्वार तक पहुंचने के बाद सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है। द्वार के पास 18 फुट चौड़ा एवं 12 फुट ऊंचा मेहराबनुमा दरवाजा है। सीधे पूरब दिशा में चलने पर पूर्ण अंधेरा हो जाता है। गुफा में लगभग 363 फुट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें साल भर पानी रहता है, इसलिए इसे ‘पातालगंगा’ कहते हैं।
इसके आगे यह गुफा काफी संकरी हो जाती है। गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसी गुफा के बीच से एक अन्य गुफा शाखा के रूप में फूटती है, जो आगे एक कक्ष का रूप धारण करती है। इसी कक्ष को लोग नाच घर या घुड़दौड़ कहते हैं।
रोशनी का समुचित प्रबंध नहीं होने के कारण श्रद्धालु नाच घर को नहीं देख पाते। यहां से पश्चिम जाने पर एक अन्य संकरी शाखा दाहिनी ओर जाती है। इसके आगे के भाग को तुलसी चौरा कहा जाता है।
गुप्ताधाम गुफा
इस मिलन स्थल से एक और गुफा थोड़ी दूर दक्षिण होकर पश्चिम चली जाती है। इसी में गुप्तेश्वर महादेव नामक शिवलिंग है। गुफा में अवस्थित यह वास्तव में प्राकृतिक शिवलिंग है। इस पर गुफा की छत से बराबर पानी टपकता रहता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। वही गुप्ताधाम से लगभग डेढ़ किलोमीटर दक्षिण में सीता कुंड है, जिसका जल बराबर ठंडा रहता है। यहां स्नान करना एक अद्भुत आनंद है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भोलेनाथ को खुश करने के लिए भस्मासुर तपस्या कर रहा था। भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा गया तो उसने कहा कि वह जिस किसी के सिर पर अपना हाथ रखे, वह भस्म हो जाए। भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया।
तब देवी पार्वती की सुंदरता पर मोहित होकर भस्मासुर ने भगवान शिव के सिर पर ही हाथ रखना चाहा, इसलिए भगवान शिव को भस्मासुर से बचने के लिए इस गुफा में छिपना पड़ा। यह देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर बड़ी ही चतुराई से भस्मासुर का हाथ उसी के सिर पर रखवाकर उसे भस्म कर दिया।
गंगाजल चढ़ाने की परम्परा
ऐतिहासिक गुप्तेश्वर महादेव में शिवलिंग पर बक्सर से गंगाजल लेकर चढ़ाने की पुरानी परम्परा है। खासतौर पर शिवरात्रि के दिन झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ व नेपाल से भी लोग यहां पर जलाभिषेक करते हैं।
कठिन है रास्ता
बता दें कि इस गुफा तक पहुंचने का रास्ता काफी मुश्किलों भरा है। जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किलोमीटर की दूरी पर यह गुफा स्थित है। यहां पहुंचने के लिए भक्तों को दुर्गावती नदी को 5 बार और 5 पहाड़ियों की यात्रा करनी पड़ती है। उसके बाद महादेव के दर्शन के सौभाग्य प्राप्त होते हैं।
गुफा का रहस्य
इस गुफा के एक रहस्य का आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है। दरअसल, गुफा में शिवलिंग के ऊपर हमेशा जो पानी टपकता रहता है, वह कहां से आता है, इसका आज तक पता नहीं चल पाया है।
कैसे पहुंचें
सासाराम से लगभग 40 किलोमीटर दूर आलमपुर के रास्ते पनियारी पहुंचें। वहां से सामने पहाड़ी पर चढ़ाई करनी होती है। यहां एक देवी का स्थान है, जिसको लोग पनियारी माई के नाम से जानते है। शिवभक्त यहां पनियारी माई का दर्शन कर के आगे की यात्रा करते हैं। चढ़ाई के रास्ते में अनेक तरह की आवाजें, जीव-जंतु, सुंदर प्राकृतिक छटा मन को मोहित कर लेती है। बन्दरों और लंगूरों के झुन्ड इस यात्रा को और भी अद्भुत बनाते हैं।
फिर रास्ते में बघवा खोह नामक जगह मिलती है। आगे एक जगह हनुमान जी और दुर्गा जी का मंदिर है जहां बहुत-सी छोटी-छोटी दुकानें हैं। छोटी-छोटी तम्बुनुमा जगह बनाई गई हैं, जिनमें यात्री आराम करते हैं।
यहां से चलने के बाद रास्ते में दो बार दुर्गावती नदी को पार करना पड़ता है। फिर लगभग 3 या 4 किलोमीटर ऊपर-नीचे, समतल चलने के बाद पहाड़ी का दूसरा छोर आ जाता है। वहां से 3 या 4 किलोमीटर दूर चलने के बाद स्थित है बाबा गुप्तेश्वर महादेव की गुफा।