Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2023 10:26 AM
उत्तरी दिल्ली स्थित गुरुद्वारा नानक प्याऊ, जहां 1506 से 1510 के बीच श्री गुरु नानक देव जी रहे, आज भी मौजूद है। गुरु जी ने ही ग्रैंड ट्रंक रोड पर राहगीरों
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Gurdwara Nanak Piao: उत्तरी दिल्ली स्थित गुरुद्वारा नानक प्याऊ, जहां 1506 से 1510 के बीच श्री गुरु नानक देव जी रहे, आज भी मौजूद है। गुरु जी ने ही ग्रैंड ट्रंक रोड पर राहगीरों को शीतल जल पिलाना शुरू किया था। तब से अब तक यहां प्याऊ चालू है। यह दिल्ली का सबसे पुराना प्याऊ है। ग्रैंड ट्रंक रोड शेरशाह सूरी की बादशाहत में बनी थी, इसलिए इसे शाही मार्ग कहते हैं। कुछ इतिहासकार जी.टी. रोड को राणा प्रताप रोड का नाम भी देते हैं। शाही सड़क होने के चलते बड़ी संख्या में मुसाफिर यहां से रोज गुजरते थे। श्री गुरु नानक देव जी ने खुद मुसाफिरों की प्यास बुझाने के लिए कुएं की बगल में प्याऊ का इंतजाम किया। वह अपने हाथों से मुसाफिरों को पानी पिलाते। यहीं गुरु देव इलाही कीर्तन करते। धीरे-धीरे गुरु साहिब के दर्शन करने के लिए लोग उमड़ने लगे।
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बाग मालिक ने बनवाया पक्का प्याऊ: श्री गुरु नानक देव जी के चरण पड़े तो बाग के मालिक ने पक्का प्याऊ बनवा दिया। इसके बाद यहां पर पूजा-अर्चना भी होने लगी। तब से ही यह पवित्र स्थल ‘प्याऊ साहिब’ कहलाने लगा। बाद में यह ‘नानक प्याऊ’ के नाम से न केवल दिल्ली बल्कि दूर-दूर तक विख्यात हुआ। श्री नानक प्याऊ से पानी पिलाने का सिलसिला आज भी जारी है।
लोग गुरुद्वारे में माथा टेकते हैं और प्याऊ से पानी पीते हैं। कुछ भक्त पाउच और बोतलों में जल भरकर घर भी ले जाते हैं। गुरुद्वारे के बाहर का चौक बेबे नानकी चौक कहलाता है। चौक का नामकरण 2013 में किया गया। बेबे नानकी श्री गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन थीं। श्री गुरु नानक देव जी 15 साल के हुए, तो पिता ने कारोबार के लिए उन्हें बेबे नानकी के पास भेज दिया। इसी दौरान, सबसे पहले बेबे नानकी को महसूस हुआ कि उनके भाई के भीतर परमात्मा की ज्योत है, जो दीन-दुखियों के दुख-दर्द को हरने के लिए है। ‘नानक प्याऊ’ से जाने के कुछ साल बाद 1518 में, श्री गुरु नानक देव जी अपनी दूसरी उदासी यानी धर्म प्रचार यात्रा के बाद बहन नानकी को मिलने गए। इसी दौरान, बेबे नानकी वाहेगुरु जी के चरणों में जा विराजीं। बेबे का अंतिम संस्कार श्री गुरु नानक देव जी के हाथों ही हुआ था।