Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jan, 2025 07:46 AM
Guru Gobind Singh Birth Anniversary 2025: दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश सम्वत् 1723 (दिसम्बर 1666 ई.) को श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर माता गुजरी जी की कोख से पटना साहिब में हुआ। इनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। इनके जन्म के समय घुड़ाम...
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Guru Gobind Singh Birth Anniversary 2025: दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश सम्वत् 1723 (दिसम्बर 1666 ई.) को श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर माता गुजरी जी की कोख से पटना साहिब में हुआ। इनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। इनके जन्म के समय घुड़ाम शहर (पंजाब) में एक मुसलमान फकीर सय्यद भीखन शाह जी ने पूर्व की ओर मुंह करके नमाज अदा की।
शिष्यों ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा,‘‘आज पटना साहिब में स्वयं भगवान ने मानव रूप में जन्म लिया है।’’
धर्म प्रचार का दौरा समाप्त होने पर जब गुरु तेग बहादुर जी पंजाब आए तो इन्होंने अपने परिवार को भी पटना से अपने पास आंनदपुर साहिब बुला लिया। यहां गोबिंद राय जी ने धार्मिक विद्या ग्रहण की तथा शस्त्र विद्या में भी निपुणता हासिल की। कश्मीर के उस समय के गवर्नर इफ्तखार खान ने औरंगजेब के इशारे पर कश्मीर के ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार किए। हिन्दुओं को जबरदस्ती मुस्लिम धर्म ग्रहण करने के लिए विवश किया जा रहा था।
औरंगजेब के जुल्मों से तंग आकर कश्मीरी ब्राह्मणों का एक दल मटन के निवासी पंडित कृपाराम दत्त की अगुवाई में गुरु तेग बहादुर जी की शरण में आंनदपुर साहिब में 25 मई, 1675 ई. को आया तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए पुकार की। गोबिंद राय जी ने अपने पिता जी को हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु स्वयं दिल्ली की तरफ रवाना किया और जाते समय गुरु तेग बहादुर जी गुरुगद्दी श्री इन्हें सौंप गए।
गुरु जी ने अपने पिता जी की शहादत के बाद जुल्म से सीधे टक्कर लेने के लिए अपनी सेना में बढ़ौतरी करनी शुरू कर दी। जब गुरु जी पाऊंटा साहिब गए हुए थे, तो वहां फरवरी 1686 ई. में भंगानी के मैदान पर बाइस धार के हिन्दू राजाओं ने मुगलों से मिलकर गुरु जी से लड़ाई की, जिसमें गुरु जी की जीत हुई।
एक वैशाख सम्वत् 1756 (अप्रैल 1699 ई.) को गुरु जी ने खालसा पंथ की सृजना की तथा पांच प्यारे सजाए। इन पांच प्यारों का जन्म तलवार की धार में से हुआ। गुरु जी ने बाद में पांच प्यारों को गुरु के तुल्य सम्मान देते हुए उनसे खुद अमृतपान किया तथा इनका नाम गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह जी हो गया।
हालांकि, गुरु जी को अधिकांश समय युद्धों में रहना पड़ा, इसके बावजूद इन्होंने बहुत बाणी की रचना की, जिनमें जाप साहिब, सवैये, बचित्तर नाटक, वार श्री भगौती जी की (चंडी की वार), अकाल उस्तति, जफरनामा उल्लेखनीय हैं इसलिए इन्हें कलम तथा तलवार के धनी भी कहा जाता है।
आंनदपुर साहिब तथा पाऊंटा साहिब में रहते हुए गुरु जी ने पुरातन धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद भी करवाया। इनकी हजूरी में 52 कवि हमेशा रहा करते थे, जिन्होंने काफी साहित्य की रचना की।
मुगलों तथा 22 धार के राजाओं द्वारा अपने-अपने धार्मिक ग्रंथों की शपथ लेने पर 6 पौष सम्वत् 1761 मुताबिक 20 दिसम्बर, 1704 ई. (प्रिंसिपल तेजा सिंह व डा. गंडा सिंह के अनुसार 1705 ई.) को गुरु जी ने आनंदपुर साहिब को छोड़ दिया। कुछ ही समय के पश्चात दुश्मन अपनी शपथों को भूल गया तथा गुरु जी पर हमला कर दिया।
सरसा नदी पर घोर युद्ध हुआ जिसमें गुरु जी का परिवार बिखर गया। इन्हें चमकौर साहिब में मुगलों से युद्ध लड़ना पड़ा, जिसमें इनके दो बड़े साहिबजादे, तीन प्यारे तथा कई सिंह शहीद हो गए। इनके दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के सूबेदार वजीर खान द्वारा दीवारों में चिनवा कर शहीद कर दिया गया। माता गुजरी जी भी सरहिन्द में ही शहीद हुए।
चमकौर साहिब से गुरू जी पांचों प्यारों का हुक्म मानकर माछीवाड़े के जंगलों में जा पहुंचे। इसके बाद इन्हें माछीवाड़ा के दो पठान भाईयों नबी खां और गनी खां ने उगा के पीर के रूप में आगे के लिए रवाना किया। जब आप खिदराने की ढाब (मुक्तसर साहिब) के निकट पहुंचे तो मुगल सेना ने दोबारा गुरू जी पर हमला कर दिया। यहां माई भागो व भाई महां सिंह जी के नेतृत्व में गुरु जी का किसी समय साथ छोड़ चुके सिंहों ने मुगलों से लड़ाई की। यहां भी जीत गुरु जी की हुई।
गुरु जी ने मुक्तसर की लड़ाई के बाद गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र बीड़ दोबारा लिखवाई, जिसमें गुरु तेग बहादुर जी की वाणी भी शामिल की गई। गुरु जी ने औरंगजेब को जफरनामा भी लिखा, जिसका मतलब है ‘जीत की चिट्ठी’। इसे पढ़कर वह इतना भयभीत हुआ कि उसके पाप उसे डराने लगे तथा अंत में उसकी मौत हो गई।
बाद में आप दक्षिण की ओर चले गए तथा महाराष्ट्र के शहर नांदेड़ में रह रहे माधो दास बैरागी को अमृतपान करवा कर बाबा बंदा सिंह बहादुर बनाया, जिन्होंने सरहिन्द की ईंट से ईंट बजाते हुए गुरु साहिब जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला लिया। नांदेड़ में ही आप जी ने गुरुगद्दी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को दे दी तथा 7 अक्तूबर, 1708 ई. को ज्योति जोत समा गए। गुरु जी की सारी लड़ाई मानवता की रक्षा के लिए थी।