Guru Gobind Singh Jayanti 2025: श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन समस्याओं से निपटने के लिए देता है सीख

Edited By Prachi Sharma,Updated: 05 Jan, 2025 11:20 AM

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दशमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महान आध्यात्मिक सामाजिक नेता उत्कृष्ट दार्शनिक, उच्च कोटि के कलाविद् और विद्वान, अनुपम बाणी-उच्चारक एवं भाषाविद् तथा आदर्श सेनानायक रहे हैं

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Guru Gobind Singh Jayanti 2025: दशमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महान आध्यात्मिक सामाजिक नेता उत्कृष्ट दार्शनिक, उच्च कोटि के कलाविद् और विद्वान, अनुपम बाणी-उच्चारक एवं भाषाविद् तथा आदर्श सेनानायक रहे हैं। गुरु जी का जीवन काल इतना सम्पूर्ण एवं उदात्त है कि जिससे प्रेरणा प्राप्त कर मनुष्य, जीवन के उच्चतम आदर्शों को प्राप्त करने के साथ-साथ अपनी सामान्य समस्याओं से निपटने के लिए भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। वास्तव में दशमेश पिता एक सम्पूर्ण एवं आदर्श व्यक्तित्व हैं।

संत सिपाही: दशमेश पिता संत भी थे और सिपाही भी। आपने गरीबों और मजलूमों की रक्षा एवं जुल्म का विरोध करने के लिए शस्त्र धारण किए। युद्ध करते समय भी गुरु जी का हृदय उच्च मानवीय गुणों से ओत-प्रोत रहता था। औरंगजेब के सिपहसालार सैद खान से युद्ध करते समय गुरु जी ने उस पर वार किया तो वह घायल होकर गिर पड़ा। ऐसी अवस्था में भी दशमेश पिता ने न सिर्फ अपनी ढाल से उस पर छाया की बल्कि उसकी मरहमपट्टी का भी प्रबंध किया। यह भी प्रसिद्ध है कि गुरु जी के तीरों में सोना लगा होता था ताकि आपके हाथों मरने वाले को अंतिम संस्कार का सामान मिल सके और यदि कोई जख्मी हो जाए तो उसे इलाज का खर्च मिल सके। जब गुरु जी के पास भाई घन्हैया जी की शिकायत पहुंची कि ये शत्रु पक्ष के घायलों को भी पानी पिलाते हैं तो आपने भाई घन्हैया जी की प्रशंसा की और आज्ञा दी कि अब घायलों की मरहमपट्टी भी किया करो।

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महान योद्धा, संगठनकर्ता और सेनानायक : श्री गुरु गोबिंद सिंह जी उच्च कोटि के योद्धा तो थे ही साथ ही महान संगठनकर्ता एवं सेनापति भी थे। अन्याय से पीड़ित जनता को एकत्र कर खालसा पंथ का सृजन किया और ऐसी अदम्य शक्तिशाली सेना तैयार की जिसने अपने समय की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों से लोहा लिया और उन्हें परास्त किया।

सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतक: दशमेश पिता का समस्त संघर्ष शोषित पीड़ित मानवता की रक्षा के लिए था। आपने खालसा पंथ की सृजना कर अमृत छका कर दीन-हीन मनुष्यों में महान शक्ति भर दी। ‘चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं’ और ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं’ का उद्घोष कर गुरु जी ने इनमें वह शक्ति संचारित कर दी कि ये अपने सम्मान की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी शक्ति से भी भिड़ने में समर्थ हो गए। गुरु जी द्वारा सृजित खालसा पंथ जात-पात, ऊंच-नीच आदि समस्त भेदभाव से मुक्त था और सभी प्राणियों को एक ही ईश्वर की संतान मानने वाला था। गुरु जी ने शक्तिहीन जनता को राजनीतिक शक्ति हासिल करने योग्य बनाया। दशमेश पिता का यह प्रयास कालांतर में सिख राज्य की स्थापना के साथ सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था। गुरु जी का संदेश स्पष्ट था कि सभी प्राणी समान हैं और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में उनकी भागीदारी का अधिकार भी समान है।

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आध्यात्मिक नेतृत्व:  गुरु जी ने शोषित पीड़ित मानवता को सांसारिक शक्ति प्राप्त करने के योग्य ही नहीं बनाया बल्कि उसे आध्यात्मिक क्षेत्र में भी उच्च कोटि का नेतृत्व प्रदान किया। प्रथम पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित एवं परवर्ती गुरु साहिबान द्वारा पुष्ट आध्यात्मिक मार्ग को सिखों का आदर्श बनाने में दशमेश पिता ने कोई कमी शेष न रखी। आपने सिखों को पांच ककार प्रदान कर उच्च आदर्श जीवन जीने का सिद्धांत प्रदान किया : ‘केश- उच्च चिंतन, कृपाण- शक्ति, कछहिरा- आदर्श चरित्र, कड़ा- संयम और कंघा- स्वच्छता या निर्मलता का प्रतीक है।’ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरुआई सौंपना भी दशमेश पिता का एक अद्भुत निर्णय था। आपने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु रूप में स्थापित किया।

सरबंसदानी (सर्ववंशदानी) : विश्व का इतिहास आत्म बलिदानियों के अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है परंतु सर्ववंश दान की एकमात्र मिसाल मिलती है दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की। दशमेश पिता के परदादा पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी ने शहादत देकर शहीदी परम्परा का आरंभ किया फिर दशम गुरु के पिता नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी ने चांदनी चौक में शहादत दी। दशम पातशाह ने अपने चारों साहिबजादे भी मानवता की रक्षा के लिए शहीद करवा दिए। माता गुजरी जी भी इस संघर्ष में अपनी शहादत दे गईं।

चमकौर साहिब के युद्ध के बाद जब दशमेश पिता को चारों साहिबजादों की शहादत के विषय में बताया गया तो महान गुरु जी ने कहा, ‘‘चार मुए तो किया हुआ, जीवत कई हजार।’’ अर्थात मेरे चार पुत्र शहीद हो गए तो क्या हुआ, सिखों के रूप में मेरे हजारों पुत्र अभी जीवित हैं। 

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