Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Nov, 2023 11:12 AM
गुरु नानक देव जी ने भारत के चारों ओर ‘उदासियां’ (यात्राएं) की तथा मक्का तक भी गए। इन यात्राओं में उनके परम भक्त तथा श्रद्धालु बाला और मरदाना उनके साथ रहते थे। इन्हीं यात्राओं में एक बार
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Kahani Guru Nanak ki: गुरु नानक देव जी ने भारत के चारों ओर ‘उदासियां’ (यात्राएं) की तथा मक्का तक भी गए। इन यात्राओं में उनके परम भक्त तथा श्रद्धालु बाला और मरदाना उनके साथ रहते थे। इन्हीं यात्राओं में एक बार वह एक गांव में गए, जहां पर सभी नर-नारियों तथा बूढ़े-बच्चों ने उनका हार्दिक स्वागत किया। गुरु जी उनकी संत सेवा तथा श्रद्धा भाव से अत्यंत प्रसन्न हुए। बाला और मरदाना भी खुश थे।
अगले दिन जब गुरु जी उनके साथ गांव से चलने लगे तो सभी गांव वासी उनको विदा करने के लिए आए। उस समय गुरु नानक जी ने आशीर्वाद दिया कि आप सभी लोग ‘उजड़ जाओ’ (देश के कोने-कोने में बिखर जाएं)। सभी भिन्न स्थानों पर जाकर रहें। बाला और मरदाना आश्चर्यचकित कि यह कैसा आशीर्वाद परंतु मौन रहे, कुछ नहीं बोले।
दूसरे दिन वे यात्रा करते-करते एक अन्य गांव में पहुंच गए। वहां के लोग बहुत दुष्ट थे। उन्होंने गुरु जी का कोई स्वागत नहीं किया बल्कि बुरा-भला कहा। न कुछ खाने के लिए दिया और न ही रहने को कोई स्थान दिया। अब रात थी इसलिए वहीं बितानी थी। सो तीनों भूखे ही एक पेड़ के नीचे जमीन पर सो गए।
अगले दिन जब वहां से प्रस्थान करने लगे तो गुरु नानक जी ने चलते समय कहा, ‘‘भगवान करे कि यह सभी लोग सदा इसी गांव में ही बसे रहें। अन्य स्थान पर न जाएं।’’
बाला और मरदाना स्तब्ध रह गए। अब उनसे नहीं रहा गया। दोनों ने गुरु नानक देव जी से शिकायत के रूप में एक साथ कहा, ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं। आपने उस गांव के सज्जन, श्रद्धालु तथा दयावान लोगों को जगह-जगह बिखर जाने का आशीर्वाद दिया तथा इस गांव के दुष्ट, अभद्र तथा क्रूर लोगों को आराम से इसी गांव में बसे रहने का आशीर्वाद दे रहे हैं। हम से यह सहन नहीं होगा।
गुरु साहिब जी बहुत ही शांत भाव से बोले, ‘‘उन सज्जनों की देश में ही नहीं संसार में सर्वत्र आवश्यकता है। जहां भी जाएंगे सत कर्म करेंगे तथा सद्गुणों का प्रसार करेंगे। इससे समाज तथा मानवता का कल्याण होगा। दुष्ट लोग अपने अवगुणों तथा दुष्टकर्मों से, जहां भी जाएंगे वातावरण को दूषित करेंगे। इसलिए इनकी दुर्गंध एक ही स्थान पर सीमित रहे तो अच्छा। मेरे प्यारे शिष्यो, इस रहस्य को समझो।
बाला और मरदाना गुरु जी के चरणों में नत मस्तक हुए तथा क्षमा याचना की। तब वे अगली यात्रा पर चल पड़े।