Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Nov, 2024 12:39 PM
Guru nanak dev ji prakashutsav: सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्म राय भोंए की तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में 1469 ई. में मेहता कालू जी के घर माता तृप्ता जी की कोख से हुआ। आपका जन्मदिन कार्तिक की पूर्णिमा को मनाया जाता...
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Guru nanak dev ji prakashutsav: सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्म राय भोंए की तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में 1469 ई. में मेहता कालू जी के घर माता तृप्ता जी की कोख से हुआ। आपका जन्मदिन कार्तिक की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बचपन से ही आपका मन प्रभु की भक्ति में लीन रहता था तथा जरूरतमंदों की मदद करना आपकी आदत बन गई थी। पिता मेहता कालू जी ने आपको पढ़ने के लिए पंडित जी तथा मौलवी के पास भेजा, ताकि आप वैदिक, धार्मिक, गणित व अन्य ज्ञान सीख सकें और मौलवी से फारसी तथा इस्लामिक साहित्य का अध्ययन कर सकें। ये बचपन से ही संत-महापुरुषों की संगत करते रहते थे।
जब ये कुछ और बड़े हुए तो उन्हें कारोबार सिखाने के लिए 20 रुपए देकर कुछ सामान खरीदने के लिए भेजा गया, ताकि उस सामान को वापस आकर अधिक मूल्य पर बेचकर मुनाफा कमाया जा सके, परंतु गुरु जी ने गांव चूहड़काना में कई दिनों से भूखे-प्यासे बैठे संत-महापुरुषों को इन 20 रुपयों का भोजन खिला दिया तथा कहा कि यह सच्चा सौदा है। इस पर इनके पिता जी बहुत नाराज हुए, परंतु गुरु जी की बड़ी बहन बीबी नानकी जी ने अपने पिता जी को समझाया कि ये कोई साधारण पुरुष नहीं, बल्कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष कार्य के लिए भेजा है।
बीबी नानकी जी का ससुराल सुल्तानपुर लोधी में था। वह इन्हें अपने पास सुल्तानपुर ही ले आई, ताकि इन्हें पिता जी के गुस्से से बचाया जा सके। यहां गुरु जी को मोदीखाने में नौकरी मिल गई, परंतु गुरु जी का ध्यान यहां भी प्रभु भक्ति में लगा रहता। जो भी जरूरतमंद आपके पास आता, आप उसे भोजन या राशन दे देते थे।
गुरु नानक देव जी इस दुनिया पर भूले-भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखाने आए थे। अपना मिशन वह देश-विदेश का भ्रमण करके ही पूरा कर सकते थे। गुरु जी ने सभी को समझाया कि मनुष्य को इंसान बनना है, इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। अपना मिशन पूरा करने के लिए गुरु जी ने चारों दिशाओं में चार लंबी यात्राएं कीं, जिन्हें चार उदासियां कहा जाता है। इन चार यात्राओं में गुरु जी ने देश-विदेश का भ्रमण किया तथा लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। गुरु जी ने पहाड़ों में बैठे योगियों तथा सिद्धों के साथ भी वार्ताएं कीं तथा उन्हें दुनिया में जाकर परमात्मा के साथ जुड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए कहा। आप जी ने गृहस्थ मार्ग को सर्वोत्तम माना तथा स्वयं भी गृहस्थ जीवन व्यतीत किया।
गुरु नानक देव जी अपनी यात्राएं (उदासियां) पूरी करने के बाद करतारपुर साहिब आ गए। उन्होंने उदासी साधुओं का भेष उतार कर संसारी वस्त्र धारण कर लिए। सत्संग प्रतिदिन होने लगा। गुरु जी स्वयं खेतीबाड़ी का काम करने लगे तथा दूर-दूर से लोग इनके पास धर्म कल्याण के लिए आने लगे। यहां भाई लहणा जी गुरु जी के दर्शनों केलिए आए तथा सदैव के लिए गुरु जी के ही होकर रह गए।
आपने अपने पुत्रों को गुरुगद्दी नहीं दी, बल्कि त्याग, आज्ञाकारी एवं सेवा की मूर्त भाई लहना जी की कई कठिन परीक्षाएं लेने के बाद हर तरह से उन्हें गुरुगद्दी के योग्य पाकर उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी और उनका नाम गुरु अंगद देव जी रखा।
गुरु नानक देव जी 1539 ई. में करतारपुर साहिब में ज्योति ज्योति समा गए। गुरु जी ने विश्व को यही संदेश दिया कि भगवान एक ही है। मनुष्य संसार में सचियार बनने के लिए आता है। सचियार बनना ही परमात्मा को पाना है। परमात्मा तथा मनुष्य के बीच झूठ की एक दीवार बनी हुई है जोकि मनुष्य ने ही बनाई है। यदि मनुष्य अपनी चतुराई को छोड़ कर खुद को प्रभु को समॢपत कर दे तथा उसके हुक्म में चले तो यह झूठ की दीवार टूट सकती है और मनुष्य सचियार बन सकता है।
गुरु जी ने लोगों को उपदेश दिया कि भगवान को पाने के लिए जंगल में जाने की कोई आवश्यकता नहीं, बल्कि दुनिया में रह कर ही मानवता की सेवा करते हुए प्रभु को पाया जा सकता है।