Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Nov, 2024 01:05 AM
श्री गुरु नानक देव जी ने तीन सिद्धांत दिए, जिन्हें मनीषियों ने ‘त्रिरत्न सिद्धांत’ की संज्ञा से अभिहित किया है और स्पष्ट किया है कि इन सिद्धांतों पर अमल करने वाला दुनिया का कोई भी इंसान अपना लोक-परलोक सफल कर सकता है।
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श्री गुरु नानक देव जी ने तीन सिद्धांत दिए, जिन्हें मनीषियों ने ‘त्रिरत्न सिद्धांत’ की संज्ञा से अभिहित किया है और स्पष्ट किया है कि इन सिद्धांतों पर अमल करने वाला दुनिया का कोई भी इंसान अपना लोक-परलोक सफल कर सकता है। ये सिद्धांत थे :
किरत (श्रम) करो अर्थात् मेहनत की कमाई करो!
नाम जपो अर्थात् एक ईश्वर की आराधना करो!
वंड छको अर्थात् मिल-बांट कर खाओ!
सिख पंथ के महान विद्वान कवि भाई साहिब भाई वीर सिंह गुरु जी के ‘त्रिरत्न सिद्धांत’ को मन, वचन व कर्म से मानने का संदेश देते हुए गुरु-चरणों में नत्मस्तक होकर अपनी स्थिति को बयान करते हुए कथन करते हैं कि ‘श्री गुरु नानक देव जी जगत में आए तो हम लोग पशु के समान थे, हमें पशु से इंसान बनाया और फिर इंसान से देवता बना दिया। अब हमारा धर्म है कि हम धर्म की किरत करें, नाम जपें तथा मिल- बांट कर खाएं।’
श्री गुरु नानक देव जी ने कलियुगी जीवों का मार्गदर्शन करते हुए सहज एवं सरल ढंग से समझाया है कि यह संसार कर्म-भूमि है। यहां पर जैसे बीज बोएंगे, वैसी फसल तैयार होनी है।
‘जपु जी साहिब’ में बड़े सुंदर ढंग से समझाया गया है कि पुण्य-कर्म और पाप-कर्म कहने मात्र के लिए नहीं बने अपितु मन-वचन-कर्म से मनुष्य जो कर्म करेगा, उन्हें संस्कार रूप में उकेर कर अपने साथ ले जाएगा और ईश्वर के अटल नियमानुसार स्वयं ही उनका फल भोगेगा।
गुरु जी के उपदेश समस्त धर्मों हेतु समान थे, इसलिए उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समझाया कि पराया हक छीनना या खाना पाप है।
राजनीतिक अन्याय देख कर श्री गुरु नानक देव जी का हृदय पसीज उठा। उन्होंने समकालीन शासकों की धर्मांधता एवं असहिष्णुता का वर्णन करते हुए अपनी शुद्ध देश-भक्ति का परिचय दिया। यह भी स्पष्ट किया कि राज सिंहासन पर वही बैठे जो उस पर बैठने योग्य हो।
इसके अतिरिक्त श्री गुरु नानक देव जी ने श्रद्धाविहीन लोक-प्रदर्शन के लिए किए गए आडम्बरों एवं कर्मकांडों की तुलना बंजर भूमि के समान करते हुए कहा कि जैसे बंजर भूमि में बोए गए बीज और उन पर की गई मेहनत व्यर्थ चली जाती है, ठीक वैसे ही कर्मकांडों द्वारा मनुष्य का अमूल्य जीवन व्यर्थ चला जाता है।
श्री गुरु नानक देव जी ने संवाद (कथोपकथन) जारी रखने की हिदायत दी, क्योंकि आपसी संवाद सभी प्रकार की शंकाओं का निवारण करता है और समस्याओं से निजात दिलाता है तथा व्यर्थ के विवादों से भी बचाता है।
श्री गुरु नानक देव जी के निर्मल उपदेश एवं अमृत-तुल्य बाणी मानवतावादी दृष्टिकोण, भातृ-भावना, सर्वधर्म समन्वय एवं विश्वकुटुम्बकम भाव से ओत-प्रोत होने के कारण आज भी प्रासंगिक है।