गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर- आत्मनिरीक्षण का पर्व है गुरु पूर्णिमा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jul, 2024 07:43 AM

guru purnima

वर्ष भर में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं में वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध के जन्म और उनके बुद्धत्व को समर्पित है इसलिए उसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। ठीक इसी तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा धरती मां को और आषाढ़ पूर्णिमा सभी गुरुजनों को

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The Art of Living- वर्ष भर में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं में वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध के जन्म और उनके बुद्धत्व को समर्पित है इसलिए उसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। ठीक इसी तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा धरती मां को और आषाढ़ पूर्णिमा सभी गुरुजनों को समर्पित है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों सहित 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता का संकलन किया। वेदों के संकलन करने के कारण ही उन्हें वेदव्यास कहा जाता है।

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर पूर्णरूपेण सजगता से एक शिष्य में, अपने गुरु के प्रति केवल और केवल आभार का भाव होता है। यह आभार द्वैत का न होकर अद्वैत का आभार होता है। यह कहीं से बहकर कहीं और जाती नदी नहीं वरन् स्वयं में हिलोरें लेती सागर की लहरों के समान है। गुरु पूर्णिमा अद्वैत का प्रतीक है।

गुरु पूर्णिमा का उद्देश्य है, आत्मनिरीक्षण। इस दिन थोड़ा पीछे मुड़कर देखें कि बीते एक वर्ष में आपका कितना विकास हुआ है। एक शिष्य के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण दिन है। यह ठीक नववर्ष जैसा है। यह अपने अध्यात्म पथ पर विकास के पूर्वावलोकन का दिन है। मन को अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर उसके प्रति पुनः संकल्प लेने का दिन है। चंद्रोदय और चन्द्रास्त के साथ अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता के आंसू हमारे भीतर उमड़ते है और हम अपनी ही आत्मा की विशालता में लीन हो अपने में विश्राम करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन यह भी चिंतन करें कि आपने क्या खोया और क्या पाया ? यह अपनी उपलब्धियों पर आभार प्रकट करने का भी दिन है, साथ ही अपने लक्ष्य के लिए दृढ़ संकल्प लेने का भी दिन है। आपका जीवन आशीर्वाद और ज्ञान से परिपूर्ण हो, ज्ञान से आप अपने जीवन को रूपांतरित कर सकें, साथ ही जो कुछ भी आपको प्राप्त हुआ है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहें। हमारी गुरु परंपरा ने इस ज्ञान का परीक्षण किया, इसका अभ्यास किया और गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करते हुए, गुरु पूर्णिमा के पर्व को हर्ष और आनंद के साथ मनाया।    

अपने गुरु से आपको जो मांगना है वह मांगो, शर्माओं मत। गुरु से अपने दिल की हर बात साझा करो, यह मत सोचो गुरु क्या सोचेंगे, मेरी इस समस्या का हल करेंगे की नहीं। गुरु यहां आपको मुक्त करने आए हैं, आप जैसे हैं गुरु आपको वैसे स्वीकार कर लेंगे। आपको उनकी कृपा का प्रसाद हर समय, हर देश, काल और परिस्थिति में प्राप्त होगा। आप गुरु का काम करो, गुरु आपका काम आपसे भी बेहतर करके देंगे। गुरु का काम क्या है? गुरु का काम है मुस्कान को फैलाना, जो व्यक्ति आपसे मिले उसे हल्का महसूस हो। यदि कोई रोते हुए आपके पास आए, तो मुस्कुराते हुए वापिस जाए। लोगों की समस्या सुनें उन्हें समाधान देने की कोशिश न करें, बस उन्हें सुनें।

एक ही पथ पर अनेक पक्षों का योग, बड़ा ही दुर्लभ होता है। कई पथ केवल ध्यान करने की बात करते हैं, ज्ञान-चर्चा नहीं। कई ऐसे भी पथ हैं, जहां केवल संगीत और नृत्य ही है, गहन-ध्यान विधि नहीं है। हम अध्यात्म के ऐसे पथ के पथिक हैं जहां आपके विकास के लिए गहन मौन, शांति, आनंद, ध्यान आदि तरह-तरह की विधियां हैं। जिनसे हमें गहरे तनाव से मुक्ति मिलती है। इसलिए हर क्षण अपने आप को भाग्यशाली मानें। इस पथ ने ज्ञान के सभी पक्षों को समेट लिया है। इस पथ पर केवल उत्सव ही उत्सव है, अपने जीवन को एक उत्सव बनाइए। नाचें, गाएं, साथ ही गहन बौद्धिक विषयों पर और ज्ञान-सूत्रों पर भी चर्चा करें। इस पथ पर उपरोक्त सभी पक्ष सम्मिलित हैं और साथ ही सेवा का पक्ष भी शामिल है। सेवा तो और भी अधिक महत्वपूर्ण है। हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें सेवा का अवसर प्राप्त हो रहा है। हमें इस तथ्य का आभास होना अत्यंत आवश्यक है कि सेवा हमारा सौभाग्य है। साथ ही यह भी स्मरण रखें कि आप परमात्मा के अत्यंत प्रिय हैं।

कृतज्ञता, सुंदरता का दूसरा पक्ष है। जब किसी भी अभाव का, आभास न हो, तो कृतज्ञता का आभास होता है। आप कृतज्ञ भी हों और अभावग्रस्त भी, यह संभव नहीं है। संभवतः आपको अनुभव दोनों का होता है लेकिन अलग-अलग समय पर। अपने ज्ञान का उपयोग करें और अभाव को दूर कर, आभार प्रकट करें। प्रकृति का यह नियम है कि कृतार्थ व्यक्ति पर और कृपा होती है, उसे और प्राप्ति होती है। जिनको भी प्राप्त हुआ है, उन्हें और दिया जाएगा। इस गुरु पूर्णिमा पर अपना आत्मनिरीक्षण करें और आश्वस्त रहें कि गुरु हर समय आपके साथ हैं और उनका आशीर्वाद सदैव आपके साथ है।

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