Edited By Jyoti,Updated: 12 Jul, 2022 11:40 AM
भगवान विष्णु जी के अंशावतार महर्षि वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है। द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन रखा गया। इनके पिता ऋषि पराशर जी तथा माता सत्यवती थीं। सर्वप्रथम एक ही वेद था। जब इन्होंने धर्म का ह्रास होते देखा...
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भगवान विष्णु जी के अंशावतार महर्षि वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है। द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन रखा गया। इनके पिता ऋषि पराशर जी तथा माता सत्यवती थीं। सर्वप्रथम एक ही वेद था। जब इन्होंने धर्म का ह्रास होते देखा तो वेदों का व्यास कर अर्थात उनका विभाग कर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद आदि नामों से नामकरण किया। इस प्रकार वेदों का व्यास करने के कारण ये ‘कृष्ण द्वैपायन’ से ‘महर्षि वेद व्यास’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इसके अतिरिक्त महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों के अर्थ को लोक व्यवहार में समझाने के लिए पंचम वेद के रूप में ‘महाभारत ग्रन्थ’, सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय, भगवान की दिव्य लीलाओं, शास्त्रीय विधान तथा मानवीय इतिहास का युगों तथा कल्पों के माध्यम से ‘श्रीमद्भागवत’, ‘शिव पुराण’, ‘श्रीमद् देवी भागवत’, ‘ब्रह्म वैवर्त पुराण’ इत्यादि 18 पुराणों के रूप में वर्णन करने के अलावा ‘ब्रह्मसूत्र’ जैसे वैदिक सनातन संस्कृति का मार्गदर्शन करने वाले अद्वितीय वैदिक धर्म ग्रन्थों की रचना कर वैदिक सनातन ज्ञान निधि ग्रन्थों को भव्य स्वरूप प्रदान किया।
इस प्रकार समस्त वैदिक ज्ञान निधि को एक सूत्र में पिरोने वाले सूत्रधार महर्षि वेद व्यास जी की पावन जयंती गुरु पूर्णिमा (गुरु पूजा) संपूर्ण भारतवर्ष में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु पूजा का महान पर्व महर्षि वेद व्यास जी को ही समर्पित है। इसीलिए वेदों, पुराणों, उपनिषदों के प्रवक्ता जिस आसन पर विराजमान हो कर प्रवचन करते हैं उसे ‘व्यास गद्दी’ कहा जाता है।
‘महाभारत’ के अतिरिक्त महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित ग्रंथों में जीव, प्रकृति तथा ब्रह्म की व्याख्या के साथ इतिहास का तथा विविध प्रकार की श्रुतियों के रहस्य आदि का पूर्ण रूप से निरूपण किया गया है। भगवान वेद व्यास जी ने अपनी तपस्या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्तार करके इस लोकपावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। इन्होंने मन ही मन ‘महाभारत’ की रचना कर लेने के बाद विघ्नेश्वर गणेश जी से प्रार्थना की कि, ‘‘हे गणनायक! आप इस ‘महाभारत’ ग्रंथ के लेखक बन जाइए, मैं बोलकर लिखाता जाऊंगा।’’
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तीन वर्षों के अथक परिश्रम से इन्होंने ‘महाभारत’ ग्रंथ की रचना की। 60 लाख श्लोकों की ‘महाभारत संहिता’ के 30 लाख श्लोक देवलोक में प्रतिष्ठित हैं। पितृलोक में 15 लाख तथा गंधर्व लोक में 14 लाख श्लोकों का पाठ होता है। इस मनुष्य लोक में ‘महाभारत ग्रंथ’ के एक लाख श्लोक प्रतिष्ठित हैं। देवर्षि नारद ने देवताओं को, असित और देवल ऋषि ने पितरों को इसका श्रवण कराया है। शुकदेव जी ने गंधर्वों एवं यक्षों को तथा इस मनुष्य लोक में महर्षि वेद व्यास के शिष्य धर्मात्मा वैशम्पायन जी ने इसका प्रवचन किया है। ‘महाभारत’ में ही भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को माध्यम बनाकर लोक कल्याण के लिए प्रदान किया गया ‘श्री मद्भगवद्गीता जी’ का पावन उपदेश भी इसमें संकलित है जिसे समस्त वेदों और उपनिषदों का सारगर्भित ज्ञान कहा गया है।
सत्रह पुराणों के सार के रूप में भगवान वेद व्यास जी ने ‘श्रीमद् भागवत’ की रचना की। यह भारतीय सनातन साहित्य का मुकुटमणि तथा विद्या का अक्षय भंडार है जिसे शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को सुनाया । यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला तथा तीन तरह के तापों का शमन करता है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान् ग्रंथ है। इसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। महर्षि वेदव्यास स्वयं ईश्वर के स्वरूप हैं।
निम्न श्लोकों से महर्षि वेद व्यास जी का पूजन किया जाता है :
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।।
अर्थात्-व्यास विष्णु के रूप हैं तथा विष्णु ही व्यास हैं, ऐसे वशिष्ठ-मुनि के वंशज को मैं नमन करता हूं।
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र:।
येन त्वया भारततैलपूर्ण: प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीप:।।
अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास जी को मेरा नमस्कार है। —रविशंकर शर्मा