Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Nov, 2020 08:49 AM
श्री गुरु रामदास जी का प्रकाश 24 सितम्बर 1534 ई. को चूना मंडी लाहौर में माता श्री दया कौर जी की कोख से पिता श्री हरिदास जी के गृह में हुआ। आपके बचपन का नाम जेठा जी था। बचपन में ही आप जी
Guru Ram Dass Ji Birthday 2020: श्री गुरु रामदास जी का प्रकाश 24 सितम्बर 1534 ई. को चूना मंडी लाहौर में माता श्री दया कौर जी की कोख से पिता श्री हरिदास जी के गृह में हुआ। आपके बचपन का नाम जेठा जी था। बचपन में ही आप जी के माता-पिता का साया सिर से उठ गया। आप जी के ननिहाल बासरके गिल्लां गांव में थे जो श्री गुरु अमरदास जी का पैतृक गांव है।
ननिहाल घर में भी गरीबी थी परन्तु नाना-नानी उन्हें अपने साथ गांव बासरके ही ले आए। अपने नाना-नानी जी का हाथ बंटाने के लिए जेठा जी घुंगनियां बेचने लगे। इस तरह जो कुछ मिलता उसके साथ घर का गुजारा होता परन्तु फिर भी जब कोई जरूरतमंद आता तो जेठा जी उसकी मदद जरूर करते और अपनी घुंगनियां साधु-संतों को मुफ्त में ही खिला देते थे। गुरु अमरदास जी गोइंदवाल साहिब में निवास करते थे और बासरके की संगत उनके दर्शनों के लिए अक्सर गोइंदवाल साहिब जाया करती थी। एक बार अपनी नानी जी के साथ जेठा जी भी गोइंदवाल साहिब में गुरु जी के दर्शनों के लिए चले आए। फिर वह वापस नहीं लौटे। वहां रह कर ही गुरु घर की सेवा में समर्पित हो गए तथा गुरु घर की सेवा के साथ-साथ घुंगनियां बेचना भी जारी रखा।
गुरु की रहमतों को गुरु ही जानता है। जल्दी ही जेठा जी गुरु अमरदास जी के बहुत ही चहेते बन गए और गुरु जी आप जी को हमेशा ही राम दास कह कर पुकारते। सोढी रामदास का यह नाम गुरु का दिया हुआ है और आज भी सोढी सुल्तान सतगुरु दुनिया को रहमतें बांट रहे हैं। गुरु अमरदास जी की बड़ी बेटी बीबी दानी जी की शादी भाई रामा जी के साथ कर दी गई थी और छोटी बेटी बीबी भानी जी की आयु भी शादी के योग्य हो गई थी। गुरु अमरदास जी की धर्मपत्नी माता राम कौर जी ने एक दिन गुरु जी को कहा कि बीबी भानी जी के लिए योग्य वर ढूंढा जाए क्योंकि बेटी बड़ी हो गई है। इसी दौरान जेठा जी घुंगनियां बेच कर उधर आए तो माता राम कौर जी ने जेठा जी का सुंदर स्वरूप देखकर कहा कि लड़का ऐसा होना चाहिए।
गुरु अमरदास जी ने तुरंत अपने उस प्यारे शागिर्द जेठा जी को गले लगाते हुए कहा कि इसके जैसा तो केवल यह ही है। बीबी भानी जी का रिश्ता जेठा जी के साथ तय कर दिया गया और 22 फागुन संवत 1610 (1553 ई.) को शादी भी कर दी। आप जी के गृह में बीबी भानी जी की कोख से तीन सुपुत्र बाबा पृथी चंद जी (पृथिया), बाबा महांदेव जी और (श्री गुरु) अर्जुन देव जी प्रकट हुए।
विवाह के बाद में भी जेठा जी श्री गोइंदवाल जी में ही रहते रहे क्योंकि गुरु अमरदास जी ने भाई रामा जी को भी घर जमाई ही रखा हुआ था।
आखिर गुरु अमरदास जी ने आप जी को गुरगद्दी के योग्य जानते हुए 1 सितम्बर 1574 (मुताबिक भाद्रों सुदी 15, 2 आश्विन संमत 1631) को गुरु नानक देव जी के घर का चौथा वारिस बनाकर नाम रामदास रख दिया। गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी की आज्ञा पाकर अमृतसर साहिब में सबसे पहले सरोवर संतोखसर की खुदवाई करवाई और बाद में गुरु जी की ही आज्ञा के अनुसार अमृतसर नगरी की नींव रखी। इसके लिए 500 बीघा जमीन तुंग के जमींदारों से खरीदी गई। अमृतसर गजटियर के अनुसार 1577 ईस्वी को गुरु जी ने अमृतसर वाली जगह और साथ लगती 500 बीघा जमीन अकबर से जागीर में ली और उसके बदले तुंग गांव के जमीदारों को, जो उस जमीन के मालिक थे, 700 अकबरी रुपए दिए।
गुरु जी ने सरोवर खुदवाया और अमृतसर शहर की नींव रखी जिसको उस समय पर ‘चक्क गुरु’, ‘चक्क रामदास’ या ‘रामदासपुरा’ कहते थे। उन्होंने 52 अलग-अलग तरह के काम-धंधों वाले लोगों को वहां रहने के लिए और गुरु जी की मंडी में, जिसको ‘गुरु का बाजार’ कहते थे, अपने कारोबार खोलने के लिए बुलाया। समय के साथ यह शहर उत्तरी भारत में व्यापार का सब से बड़ा केंद्र बन गया।’’
गुरु जी ने गुरुसिखों के लिए नित्यनेम कायम किया। आप जी ने अमृत सरोवर की तैयारी आरंभ की जिसे बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने संपूर्ण करके बीच श्री हरमंदिर साहिब जी की रचना की। गुरु राम दास जी ने सूही राग में चार लांव की रचना की। आज भी प्रत्येक सिख की शादी इन चार लांवों का पाठ करने के बाद ही संपन्न होती है। आप जी ने 30 रागों में वाणी की रचना की जिनमें पिछले गुर साहिबान की बाणी से कई नए राग भी थे और विशेष कर आप जी ने छंद भी रचे। आप जी अमृतसर साहिब से वापस श्री गोइंदवाल साहिब में चले गए जहां 1 सितम्बर 1581 ईस्वी (मुताबिक भादों सुदी 3, आश्विन 2, साल 1638) को आप जी अपने छोटे सुपुत्र गुरु अर्जुन देव जी को गुरुगद्दी सौंप कर ज्योति-जोत समा गए।