Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Jun, 2024 07:07 AM
जैन धर्म के साधु-संतों का त्याग आज भी विश्व भर के मानव जगत को चकित कर देता है। त्याग, तपस्या व साधना की उस दीर्घ परम्परा में मशाल की तरह जगमगाने वाले एक महान जैन मुनिराज थे व्याख्यान वाचस्पति श्री
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Death anniversary of Gurudev Madan Lal Ji: जैन धर्म के साधु-संतों का त्याग आज भी विश्व भर के मानव जगत को चकित कर देता है। त्याग, तपस्या व साधना की उस दीर्घ परम्परा में मशाल की तरह जगमगाने वाले एक महान जैन मुनिराज थे व्याख्यान वाचस्पति श्री मदन लाल जी महाराज। इनका जन्म 130 वर्ष पूर्व 1895 में हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव राजपुर में पिता मुरारी लाल जैन व माता गेंदाबाई के घर हुआ। आपके जन्म से घर में हर प्रकार की मौज हो गई थी, इसलिए परिवार द्वारा आपका नाम ‘मौजी राम’ रख दिया गया।
मात्र 7 साल की उम्र में आपकी माता का देहांत हो गया तथा इसके 2 साल बाद ही आपके सिर से पिता का साया भी उठ गया। तत्पश्चात आपका पालन-पोषण दिल्ली में मौसी मोरनी देवी के घर हुआ। 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में अंग्रेज शासकों के साथ हुए एक क्रांतिकारी घटनाक्रम के दौरान मौजी राम ने संकल्प लिया कि अगर आज जान बच गई तो दीक्षा ग्रहण करूंगा।
16 अगस्त, 1914 को बामनौली में गुरुदेव छोटे लाल जी व गुरुदेव नाथू लाल जी के चरणों में दीक्षा ग्रहण कर बालक मौजी राम से मदन मुनि बन गए। गुरुदेवों के चरणों में कठोर अनुशासन के बीच आपका जीवन बीता, जिसके बाद त्याग और कठोर संयम के धनी मदन मुनि ने उत्तर भारत के विभिन्न नगरों में विचरते हुए लाखों युवाओं को धर्म के साथ जोड़ते हुए समाज सुधारक का काम किया।
अपनी काबिलियत का लोहा मनवाते हुए आपने युवावस्था में ही साधु समाज के अनेक महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया। सन् 1956 में आप श्रमण संघ के प्रधानमंत्री बने। आपने अपनी आध्यात्मिक विरासत अपने छह शिष्यों में से प्रमुख शिष्य श्री सुदर्शन लाल जी महाराज को सौंपी।
जीवन के अंतिम क्षणों में इस महान विभूति को गले के कैंसर जैसे जानलेवा रोग ने जकड़ लिया। दृढ़ संयम के चलते अत्यंत दर्दनाक परिस्थितियों में भी आपने उपचार के दौरान कोई समझौता नहीं किया। 27 जून, 1963 को पंजाब के जंडियाला गुरु में नश्वर शरीर को छोड़कर आप देवलोक की तरफ प्रस्थित हो गए। वर्तमान में गुरु सुदर्शन संघ के 40 संत गुरुदेवों द्वारा दर्शाए गए दृढ़ संयम का पालन करते हुए उत्तर भारत में लाखों श्रद्धालुओं को प्रभु महावीर के अहिंसा परमोधर्म के सिद्धांतों से जोड़े हुए हैं।