Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Nov, 2021 12:39 PM

gurudwara goindwal sahib

पंजाब के तरनतारन जिले में स्थित श्री गोइंदवाल साहिब नामक उपनगर प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत एक पवित्र स्थान है। हिमाचल प्रदेश के विशाल रोहतांग दर्रे को पार कर अनेक घाटियों

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Gurudwara Goindwal Sahib: पंजाब के तरनतारन जिले में स्थित श्री गोइंदवाल साहिब नामक उपनगर प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत एक पवित्र स्थान है। हिमाचल प्रदेश के विशाल रोहतांग दर्रे को पार कर अनेक घाटियों तथा विशाल मैदानों से गुजरती ब्यास नदी, डेरा ब्यास को पार कर श्री गोइंदवाल साहिब पहुंचती है। गोइंदवाल साहिब का गुरुद्वारा ‘श्री बाउली साहिब’ इस क्षेत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है।

PunjabKesari Gurudwara Goindwal Sahib
The History Behind Sikh Shrine Goindwal Baoli ब्यास नदी का जल
द्वितीय सिख गुरु श्री अंगद देव जी के खडूर साहिब में बसने के बाद, उनके बुजुर्ग सेवक भक्त श्री अमरदास जी उनके लिए विशेष रूप से ब्यास नदी का जल अपने वृद्ध कंधों पर उठाकर लाया करते थे। जब गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी सौंपी तो श्री गुरु अमरदास जी ने उस पवित्र स्थान पर, जहां से वह जल लाते समय गुरबाणी का पाठ किया करते थे, गुरुद्वारा ‘श्री बाउली साहिब’ बनवा कर ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ के पवित्र क्षेत्र का विकास किया और स्वयं भी वहां निवास कर लिया।

PunjabKesari Gurudwara Goindwal Sahib

Which Guru ji laid the foundation stone of Great Bath at Shri Goindwal Sahib गोइंदवाल साहिब में ही गुरु साहिबान द्वारा लंगर रूपी महान प्रथा की परम्परागत रूप से शुरूआत भी की गई जो बाद में सिख धर्म के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित हुई। वैसे तो प्राचीन काल में धार्मिक समारोहों में विशेषकर सामूहिक भोज के रूप में ही लंगर की प्रथा विद्यमान थी, परंतु कालांतर में सदियों की गुलामी तथा सामाजिक मूल्यों में ह्रास के चलते यह प्रथा लुप्तप्राय: हो गई थी। 

PunjabKesari Gurudwara Goindwal Sahib
यहीं शुरू हुई लंगर की प्रथा
श्री गोइंदवाल साहिब में ही सदियों के अंतराल के बाद इस प्रथा को पुन: स्थापित करवाया गया। किसी भी जाति, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव को दरकिनार कर स्थापित की गई यह प्रथा आज विश्व भर में अद्वितीय मानी जाती है।

अकबर भी आए थे यहां
उल्लेखनीय है कि सन 1598 में लाहौर से आगरा जाते समय दिल्ली के सम्राट अकबर जब गुरु जी के दर्शन-दीदार करने श्री गोइंदवाल साहिब आए तो गुरु जी के आग्रह पर सम्राट अकबर ने जनसाधारण के बीच जमीन पर बैठ कर ही लंगर ग्रहण किया। अकबर उस समय ‘लंगर’ की इस महान धारणा तथा सेवाभाव से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु जी को जमीन का टुकड़ा भेंट कर रुहानी आनंद अनुभव किया।

श्री गोइंदवाल साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी तथा गुरबाणी की वृद्ध बीड़ों का विधिवत संस्कार भी किया जाता है। ‘श्री गुरुद्वारा बाउली साहिब’ में उतरती 84 सीढिय़ों पर श्रद्धालु भक्तों द्वारा श्री जपुजी साहिब के पाठों की लड़ी भी श्रद्धापूर्वक की जाती है ताकि वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाएं। श्री गोइंदवाल साहिब में गुरुद्वारा ‘श्री बाउली साहिब’ के अलावा कई अन्य प्रसिद्ध गुरुद्वारे भी विद्यमान हैं। इनमें ‘गुरुद्वारा चौबारा साहिब’ में गुरु अमरदास जी का निवास स्थान था और यहीं पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का जन्म भी हुआ।

Gurudwara damdama sahib history ‘गुरुद्वारा दमदमा साहिब’ का निर्माण
वह स्थान जहां श्री गुरु अमरदास जी ब्यास नदी से जल ले जाते समय रुक कर विश्राम करते थे, वहां ‘गुरुद्वारा दमदमा साहिब’ बनवाया गया। इसके अलावा महान लेखक तथा गुरु घर के परम सेवक भाई गुरदास तथा प्रसिद्ध सूफी फकीर शाह हुसैन इत्यादि से संबंधित स्थानों पर भी गुरुधामों का निर्माण करवाया गया है। श्री गोइंदवाल साहिब के समीप ही ब्यास तथा सतलुज नदियों का संगम भी होता है। श्री गोइंदवाल साहिब की धरती पर सिख धर्म से संबंधित इतने घटनाक्रम हुए कि इसे ‘सिखी का धुरा’ कहा जाने लगा और विभिन्न सरकारों द्वारा भी इस क्षेत्र का विकास करवाने के लिए कई परियोजनाएं बनाई गईं। 

PunjabKesari Gurudwara Goindwal Sahib

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!