Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jul, 2023 08:27 AM
राक्षसों के राजा रावण की राजधानी चारों ओर समुद्र से घिरी हुई थी। वहां का किला भी बहुत विशाल और सुदृढ़ था। उसके चारों
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Hanuman Crossing Ocean Story: राक्षसों के राजा रावण की राजधानी चारों ओर समुद्र से घिरी हुई थी। वहां का किला भी बहुत विशाल और सुदृढ़ था। उसके चारों ओर बलवान राक्षसों का पहरा लगा रहता था। इस किले के चारों ओर गहरी खाई अभेद्य कवच की तरह इसकी सुरक्षा करती थी, जिसे पार करना अत्यंत कठिन था।
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इसी किले के भीतर एक बागीचा था, जिसे ‘अशोक वाटिका’ कहते थे। रावण ने माता सीता जी का हरण करके उन्हें इसी वाटिका में बंदी बना कर उनके आसपास चारों ओर भयानक राक्षसियों को पहरे पर बिठा रखा था।
ऐसी स्थिति में किसी का भी सीता जी के पास पहुंच पाना एकदम असंभव जैसा था। सबसे बड़ी समस्या समुद्र को पार करने की थी। इसकी चौड़ाई सौ योजन (800 मील) थी। बिना इसे पार किए किसी के लिए भी लंका पहुंचना असंभव था।
सब लोग इस समस्या को लेकर बहुत ही चिंतित थे। अंगद ने सभी मुख्य सेनापतियों से समुद्र पार करने के विषय में अपनी-अपनी शक्ति और बल का परिचय देने को कहा।
अंगद की बातें सुनकर वानरवीर गज ने कहा, ‘‘मैं दस योजन की छलांग लगा सकता हूं।’’
गवाक्ष ने बीस योजन तक जाने की बात कही। शरभ ने अपनी क्षमता तीस योजन तक बताई। वानर श्रेष्ठ ऋषभ ने कहा, ‘‘मैं चालीस योजन की छलांग लगा सकता हूं।’’
गंधमादन नामक परम तेजस्वी वानर ने एक छलांग में पचास योजन तक चले जाने की बात बताई। मैंद ने बताया कि वह एक छलांग में साठ योजन तक जा सकते हैं।
वानरराज द्विविद ने कहा, ‘‘मैं एक छलांग में सत्तर योजन तक की दूरी पार कर सकता हूं।’’ वानर श्रेष्ठ सुषेण ने एक छलांग में अस्सी योजन लांघ जाने की बात कही।
सबकी बातें सुनकर भालुओं के सेनापति जाम्बवान ने कहा, ‘‘अब मैं बहुत बूढ़ा हो चला हूं। मुझमें पहले जैसा बल नहीं रह गया है लेकिन मैं एक छलांग में नब्बे योजन तक चला जाऊंगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।’’
अंगद ने कहा, ‘‘मैं छलांग में इस सौ योजन चौड़े समुद्र को पार कर जाऊंगा लेकिन लौटते समय भी मुझमें इतनी ही शक्ति रह पाएगी, इस बात को लेकर मेरे मन में संदेह है।’’
अंगद की बातें सुनकर जाम्बवान ने कहा, ‘‘बालिपुत्र अंगद ! तुम युवराज और सबके स्वामी हो। तुम्हें किसी प्रकार भी कहीं भेजा नहीं जा सकता।’’
अंत में वृद्ध जाम्बवान ने हनुमान जी की ओर देखा। वह उस समय चुपचाप एक किनारे शांत बैठे थे। जाम्बवान ने कहा, ‘‘वीरवर हनुमान ! तुम इस तरह चुप्पी साधकर क्यों बैठे हो ? तुम पवन देवता के पुत्र हो। उन्हीं के समान बलवान हो। तुम बल, बुद्धि, विवेक, शील में सर्वश्रेष्ठ हो। तुम्हारी समता करने वाला तीनों लोकों में कोई दूसरा नहीं है। बचपन में ही तुमने ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य किए, जो दूसरों के लिए असंभव हैं। लंका जाकर भगवान श्रीराम चंद्र जी का संदेश माता सीता जी तक पहुंचाने के लिए मैं तुमसे अधिक योग्य किसी को नहीं समझता। तुम्हारा तो जन्म ही भगवान श्री रामचंद्र जी का कार्य पूरा करने के लिए हुआ है।’’
जाम्बवान के वचन सुनकर श्री हनुमान जी परम प्रसन्न हुए और वानरों को संबोधित कर कहने लगे ‘‘मैं समुद्र को लांघकर लंका को भस्म कर डालूंगा और रावण को उसके कुलसहित मारकर जानकी जी को ले आऊंगा। यदि कहो तो रावण के गले में रस्सी डाल कर और लंका को त्रिकूट पर्वत सहित उखाड़कर भगवान श्री राम के चरणों में डाल दूं।’’
हनुमान जी के वचन सुनकर जाम्बवान ने कहा, ‘‘हे वीरों में श्रेष्ठ, तुम्हारा शुभ हो, तुम केवल शुभलक्षणा जानकी जी को जीती-जागती देखकर ही वापस लौट आओ। हे रामभक्त, सभी श्रेष्ठ वानर तुम्हारे कल्याण की कामना करते हैं। तुमने अपने बंधुओं का सारा शोक नष्ट कर दिया। ऋषियों के प्रसाद, वृद्ध वानरों की अनुमति तथा भगवान श्री राम की कृपा से तुम इस महासागर को सहज ही पार कर जाओ। जब तक तुम लौटकर यहां आओगे, तब तक हम तुम्हारी प्रतीक्षा में एक पैर से खड़े रहेंगे क्योंकि हम सभी वानरों के प्राण इस समय तुम्हारे ही अधीन हैं।’’
इसके बाद छलांग लगाने के लिए श्री हनुमान जी महेंद्र पर्वत के शिखर पर पहुंच गए। उन्होंने मन ही मन छलांग लगाने की योजना बनाते हुए चित्त को एकाग्र कर श्री राम स्मरण किया। उन्होंने मस्तक और ग्रीवा को ऊंचा किया और बड़े ही वेग से शरीर को सिकोड़कर महेंद्र पर्वत के शिखर से छलांग लगा दी। कपिवर हनुमान जी के चरणों से दबकर वह पर्वत कांप उठा और दो घड़ी तक लगातार डगमगाता रहा। आकाश मार्ग से हनुमान जी ने कहा, ‘‘वानरो यदि मैं जनक नंदिनी सीता जी को नहीं देखूंगा तो इसी वेग से स्वर्ग में चला जाऊंगा। यदि मुझे स्वर्ग में भी मां सीता के दर्शन नहीं हुए तो राक्षस राज रावण को ही बांध लाऊंगा।’’