Hanuman ji ki story: मां सीता के चरणों में बजरंगबली...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Aug, 2023 08:26 AM

hanuman ji ki story

जानकी जी के वचन सुनकर हनुमान जी धीरे-धीरे अशोक वृक्ष से उतर कर उनके सामने खड़े हो गए। सूक्ष्मरूपधारी वानर को अपने सामने देखकर सीता जी को यह भय हुआ कि माया से

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Hanuman ji ki story: जानकी जी के वचन सुनकर हनुमान जी धीरे-धीरे अशोक वृक्ष से उतर कर उनके सामने खड़े हो गए। सूक्ष्मरूपधारी वानर को अपने सामने देखकर सीता जी को यह भय हुआ कि माया से वानर रूप बना कर कहीं रावण ही तो नहीं आया है? यह सोचकर वह मुख फेरकर बैठ गईं।

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तब हनुमान जी ने सीता जी के चरणों में प्रणाम करके कहा,‘‘मां! मैं करुणानिधान श्री राम जी का दूत हूं। मैं उनकी शपथ खाकर सत्य कहता हूं कि यह मुद्रिका मैं ही लाया हूं। श्री राम ने यह पहचान के लिए दी है। मैं श्री राम का दास, सुग्रीव का मंत्री तथा पवनदेव का पुत्र हूं।’’

यह सुनकर सीता जी ने कहा, ‘‘तुम कहते हो कि मैं श्रीराम का दास हूं, तो भला वानर और मनुष्यों में मित्रता कैसे हो सकती है?’’

तब हनुमान जी ने जिस प्रकार श्री राम के साथ उनका मिलाप हुआ था- वह सम्पूर्ण कथा सीता जी को विस्तारपूर्वक बताई।
हनुमान जी के प्रेमयुक्त वचन सुनकर सीता जी के मन में विश्वास उत्पन्न हो गया। उन्होंने समझ लिया कि यह श्री रघुनाथ जी का दास ही है। भगवान का अनन्य सेवक जानकर सीता जी के मन में श्री हनुमान के प्रति गाढ़ी प्रीति उत्पन्न हो गई। उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु छलकने लगे तथा शरीर पुलकित हो गया।

वह हनुमान जी से कहने लगीं, ‘‘कपिवर! तुम मेरे प्राणदाता हो। हे तात! मैं तुम्हारे ऋण से उऋण नहीं हो सकती। अब तुम राघवेंद्र सरकार तथा उनके अनुज लक्ष्मण का समाचार सुनाओ। क्या कभी वे मुझ अबला का भी स्मरण करते हैं? क्या कभी उनके कोमल शरीर को देखकर मेरी आंखें भी तृप्त हो सकेंगी?’’ ऐसा कहते-कहते उनके नेत्र भर गए, आवाज भर्रा गई।

किसी तरह से अपने-आपको संभाल कर उन्होंने कहा, ‘‘हनुमान! मुझे दुख है कि सर्वसमर्थ होने पर भी मेरे प्राणनाथ ने मुझे भुला दिया। क्या इससे उनकी निष्ठुरता नहीं सिद्ध होती?’’

सीता जी को विरह से व्याकुल देखकर श्री हनुमान जी ने कहा, ‘‘माता! कृपा के धाम श्री रघुनाथ जी अपने अनुज लक्ष्मण सहित सकुशल हैं परन्तु आपके वियोग के दुख से सदैव ही दुखी रहते हैं। प्रभु श्रीराम के हृदय में आपके प्रति आपसे दूना प्रेम है।’’ ऐसा कहते-कहते हनुमान जी का कंठ गद्गद् हो गया और आंखों से प्रेमाश्रु छलकने लगे।

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फिर धैर्य धारण कर बोले, ‘‘मां! भगवान श्रीराम ने कहा है कि मन का दुख कह डालने से कुछ घट जाता है पर कहूं किससे? यह दुख कोई जानता ही नहीं है। हम दोनों के प्रेम का रहस्य केवल मेरा मन ही जानता है। वह भी इस समय मुझे छोड़ कर तुम्हारे ही पास रहता है। बस! मेरे प्रेम का रहस्य इतने में ही समझ लो।’’

इतना सुनते ही श्री जानकी जी प्रभु के प्रेम में ऐसी मग्र हो गईं कि उन्हें अपने शरीर की सुधि भी न रही। श्री हनुमान जी ने कहा, ‘‘माता! हृदय में धैर्य धारण करें। रघुनाथ जी के बाणों द्वारा अब लंका के राक्षसों को भस्म हुआ ही समझें।’’

सीता जी ने पूछा, ‘‘हनुमान! राक्षसों की इतनी बलवान सेना से तुम्हारे जैसे छोटे-छोटे बंदर कैसे लड़ेंगे?’’

यह सुनकर हनुमान जी ने अपनी विशाल देह प्रकट की। विद्या, बल और बुद्धि में निपुण जानकर सीता जी ने हनुमान को अजर, अमर तथा श्रीराम का परम भक्त होने का आशीर्वाद दिया।

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