Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Oct, 2017 02:36 PM
बाल्यकाल में हनुमान जी ने भूख से व्याकुल होकर भगवान सूर्य नारायण को आम समझ कर निगल लिया तो उनको कैद से मुक्त करवाने के लिए इन्द्र ने अपने वज्र से हनुमान जी पर तेज प्रहार किया। वज्र के तेज प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर...
बाल्यकाल में हनुमान जी ने भूख से व्याकुल होकर भगवान सूर्य नारायण को आम समझ कर निगल लिया तो उनको कैद से मुक्त करवाने के लिए इन्द्र ने अपने वज्र से हनुमान जी पर तेज प्रहार किया। वज्र के तेज प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। सूर्य नारायण शीघ्रता से बाहर आ गए।
अपने पुत्र की यह दशा देख हनुमान के धर्म पिता वायुदेव को क्रोध आ गया। उन्होंने उसी समय अपनी गति रोक ली। तीनों लोकों में वायु का संचार रूक गया। वायु के थमने से कोई भी जीव सांस नहीं ले पा रहे थे और पीड़ा से तड़पने लगे। उस समय समस्त सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गए। ब्रह्मा जी उन सभी को अपने साथ लेकर वायुदेव की शरण में गए।
वे मूर्छित हनुमान को गोद में लेकर बैठे थे और उन्हें उठाने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। ब्रह्मा जी ने उन्हें जीवित कर दिया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करते हुए सब प्राणियों की पीड़ा दूर की।
तत्पश्चात जगत पिता ब्रह्मा ने हनुमान जी को वर दिया कि," उन्हें कभी ब्रह्मशाप नहीं लगेगा।"
भगवान इन्द्र ने हनुमान जी के गले में कमल की माला पहनाई और कहा की," मेरे वज्र के प्रहार से तुम्हारी ठुडी टूट गई है आज से आपका नाम हनुमान होगा और वज्र सी कठोर आपकी काया होगी।"
वरुण देव ने कहा की," यह बालक जल से सदा सुरक्षित रहेगा।"
यमदेव ने कहा, " इस बालक को कभी कोई रोग नहीं सताएगा और मेरे दण्ड से मुक्त रहेगा।"
कुबेर ने कहा कि," यह बालक युद्ध में विषादित नहीं होगा एवं राक्षसों से भी पराजित नहीं होगा।"
विश्वकर्मा ने कहा कि," यह बालक मेरे द्वारा बनाए गए शस्त्रों और वस्तुओं से सदा सुरक्षित रहेगा।"
ब्रह्मा जी ने पवन देव को कहा," आपका ये पुत्र शत्रुओं के लिए भयंकर और मित्रों के लिए अभयदाता बनेगा और इच्छानुसार स्वरुप पा सकेगा। जहां जाना हो वहां जा सकेगा। उसको कोई पराजित नहीं कर पाएगा ऐसा असिम यशस्वी होगा और संसार में अदभुत कार्य करेगा।"
भगवान सूर्य ने हनुमान जी को अपना तेज प्रदान किया और उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर समस्त वेदशास्त्र, उपशास्त्र का सविधि ज्ञान दिया।
बाल्यावस्था में हनुमान जी बहुत चंचल और नटखट स्वभाव के थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने ऐसी बहुत सी लीलाएं की जो उनकी उम्र के बालकों के लिए संभव न थी। बहुत बार ऐसा होता वह ऋषियों-मुनियों के आश्रम में पहुंच जाते और अपने बालपन कि नादानी में कुछ ऐसा कर जाते जिससे उनकी तपस्या में विध्न पड़ता।
समय के साथ-साथ उनकी नादानियां बढ़ती चली गई। इस वजह से उनके माता-पिता के साथ-साथ भी ऋषि-मुनि भी चिंतित थे। एक दिन उनके माता-पिता ऋषियों-मुनियों के आश्रम में गए और उनसे कहा की," हमें यह बालक कठोर तप के प्रभाव से प्राप्त हुआ है । आप उस पर अनुग्रह करो एसी कृपा करो की जिससे उसकी नादानियों में परिवर्तन आ जाए।"
ऋषियों-मुनियों ने आपस में विचार-विम्रश करके यह निर्णय लिया कि अगर बालक हनुमान अपनी शक्तियों को भूल जाएं तो उनकी नादानियों पर अंकुश लग सकता है और उनका हित भी उसी में समाहित है।
ऋषियों-मुनियों ने हनुमान जी को श्राप दिया की,"आप अपने बल और तेज को सदा के लिए भुल जाएं लेकिन जब कोई आपको आपकी कीर्ति और बल से अवगत कराएगा तभी आप का बल बढ़ेगा।"
इस श्राप के कारण हनुमान जी का बल एवं तेज कम हो गया और वह सौम्य स्वभाव से र्निवाह करने लगे।