Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jun, 2023 09:08 AM
एक बार की बात है, हनुमान जी को कुटिया में लिटाकर माता अंजना कहीं बाहर चली गईं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में इन्हें आकाश में सूर्य भगवान उदित
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Hanuman ji story of eating son: एक बार की बात है, हनुमान जी को कुटिया में लिटाकर माता अंजना कहीं बाहर चली गईं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में इन्हें आकाश में सूर्य भगवान उदित होते हुए दिखलाई दे गए। इन्होंने समझा कि यह कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है और बस, एक ही छलांग में इन्होंने सूर्य भगवान के पास पहुंच कर उन्हें पकड़ा और मुंह में रख लिया।
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सूर्य ग्रहण का दिन था। सूर्य को ग्रसने के लिए राहू उनके पास पहुंच रहा था। उसे देख कर हनुमान जी ने सोचा कि यह कोई काला फल है इसलिए ये उसकी ओर भी झपटे परंतु राहू किसी तरह भाग कर देवराज इंद्र के पास जा पहुंचा और उसने कांपते हुए स्वर में इंद्रदेव से कहा, ‘‘प्रभु, आज आपने यह कौन सा दूसरा राहू सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया है? यदि मैं भागा न होता तो वह मुझे भी खा गया होता।’’
राहू की बातें सुनकर भगवान इंद्र को बड़ा अचम्भा हुआ। वह अपने सफेद रंग के ऐरावत हाथी पर सवार होकर हाथ में वज्र लेकर बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि एक वानर बालक सूर्य को अपने मुंह में दबाए आकाश में खेल रहा है। हनुमान जी ने भी ऐरावत पर सवार इंद्र को देखा। उन्होंने समझा कि यह भी कोई खाने लायक सफेद फल है तो वह उस ओर भी झपट पड़े।
यह देख कर देवराज इंद्र बहुत ही क्रोधित हो उठे। अपनी ओर झपटते हुए हनुमान जी से अपने को बचाया और भगवान सूर्य को छुड़ाने के लिए हनुमान जी की ठुड्डी (हनु) पर वज्र का तेज प्रहार किया जिससे हनुमान जी का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
हनुमान जी के गिरते ही उनके पिता पवन देव वहां पहुंच गए। अपने बेहोश बालक को उठाकर उन्होंने छाती से लगा लिया। माता अंजना भी वहां दौड़ी हुई आ पहुंचीं। हनुमान जी को बेहोश देखकर वह रोने लगीं। पवन देव ने क्रोध में आकर अपना प्रवाह ही बंद कर दिया।
हवा के रुक जाने के कारण तीनों लोकों के सभी प्राणी व्याकुल हो उठे तथा पशु-पक्षी बेहोश हो-हो कर गिरने लगे। पेड़-पौधे और फसलें कुम्हलाने लगीं। तब इंद्र सहित सभी देवताओं को लेकर ब्रह्मा जी स्वयं पवन देव के पास पहुंचे।
उन्होंने अपने हाथों से छू कर हनुमान जी को जीवित करते हुए पवन देव से कहा,‘‘पवन देव, आप तुरंत अपना प्रवाह शुरू करें। वायु के बिना हम सब लोगों के प्राण संकट में पड़ गए हैं। यदि आपने प्रवाहित होने में जरा भी देर की तो तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुंह में चले जाएंगे। आपके इस बालक को आज सभी देवताओं की ओर से वरदान प्राप्त होगा।’’
ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने कहा, ‘‘आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’
इंद्र ने कहा, ‘‘मेरे वज्र का प्रभाव भी अब इस पर नहीं पड़ेगा। इसकी हनु (ठुड्डी) वज्र से टूट गई थी इसलिए इसका नाम आज से हनुमान होगा।’’
ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘वायुदेव, आपका यह पुत्र बल, बुद्धि, विद्या में सबसे बढ़-चढ़ कर होगा। तीनों लोकों में किसी भी बात में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई न होगा। यह भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त होगा। इसका ध्यान करते ही सबके सभी प्रकार के दुख दूर हो जाएंगे। यह मेरे ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से सर्वथा मुक्त होगा।’’
वरदान से प्रसन्न होकर तथा ब्रह्मा जी एवं देवताओं की प्रार्थना सुनकर वायुदेव ने फिर पहले की तरह बहना शुरू कर दिया। तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।