Edited By Jyoti,Updated: 06 Jun, 2019 01:06 PM
कहते हैं चाहे कोई इंसान जितनी भी कोशिश कर लें किउसका जीवन समस्याओं रहित हो लेकिन जीवम में परेशानियां और मुसीबतें कभी साथ नहीं छोड़तीं।
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कहते हैं चाहे कोई इंसान जितनी भी कोशिश कर लें किउसका जीवन समस्याओं रहित हो लेकिन जीवम में परेशानियां और मुसीबतें कभी साथ नहीं छोड़तीं। चाहे अमीर हो चाहे गरीब हो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी न कोई न कोई मुश्किल तो आती है। जिसका न चाहते हुए भी सामना करना ही पड़ता है। मगर यहां सवाल ये आता है कि इन मुश्किलों को जीवन में से निकाला कैसे जाए या ऐसा क्या किया जाए कि हमेशा के लिए परेशानी नाम का ये शब्द हमारे जीवन में से चला जाए। अब जीवन में कोई मुसीबत न आए ये तो शायद मुुमकिन नहीं लेकिन हां, इन मुसीबतों से से बचाव कैसे किए जाए इसके बारे में हमारे हिंदू ग्रंथों में बहुत कुछ बताया गया है।
तो अगर आपके जीवन में भी कुछ ऐसा बाधाएं आ रही हैं जिस कारण आपको हर काम में असफलता मिल रही है तो अब आप बेफिक्र हो जाएं क्योंकि हम आपको कुछ ऐसा बताएंगे जिसके बाद कोई परेशानी आपके पास नहीं आ पाएगी और कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएगा।
आप ने अक्सर देखा होगा कि जब भी कोई व्यक्ति सफल हो जाता है तो अपनी सफलता का ढिंढोरा पिटता है, लेकिन आपको बता दें व्यक्ति की असफलता का सबसे बड़ा कारण बाद में यही बनता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सफलता मिलने पर कुछ देर शांत हो जाना चाहिए। सुंदरकांड में बताया है कि सफल होने पर कुछ देर के लिए शांत हो जाना चाहिए। अगर हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेगा तो कामयाबी और बढ़ जाती है।
सुंदरकांड में जामवंत ने हनुमान जी की सफलता की गाथा का उल्लेख करते हुए कहा है कि बजरंगबली जी ने अनेक बाधाओं को चिरते हुए लंका पहुंचकर माता सीता को भगवान श्रीराम का संदेश दिया और लंका दहन किया और श्रीराम के पास लौट आए। ये उनकी सफलता की चरम सीमा थी। वे चाहते तो अपनी इस सफलता के बारे में खुद ही श्रीराम जी के सामने बयान कर सकते थे, लेकिन हनुमान जी जो करके आए परंतु उसकी गाथा जामवंत जी ने श्रीराम को सुनाई थी। तुलसीदास ने इसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है।
तुलसीदास जी ने लिखा है कि-
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी।
सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनय के चरित्र सुहाए।
जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
भावार्थ- जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- हे नाथ, पवनपुत्र हनुमान ने जो काम किया है, उसका हज़ार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमान जी के सुंदर चरित्र (कार्य) की गाथा श्री रघुनाथ जी को सुनाई।
सुनत कृपानिधि मन अति भाए।
पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।
भावार्थ- सफलता की गाथा सुनने पर श्रीरामचंद्र के मन को हनुमान जी और अधिक अच्छे लगने लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमान जी को फिर हृदय से लगा लिया।
इन चौपाईयों से ये पता चलता है कि ईश्वर के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है। अगर आप भी इस बात को पल्ले बांध लेंगे तो हनुमान जी तरह ही जीवन में कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं- जाएं या फिर जीवन में कितनी ही सफलता क्यों प्राप्त हो जाएं दोनों की परिस्थिति में धर्य पूर्वक शांत रहें। क्योंकि सुख और दुख में जो व्यक्ति शांत रहता है, असल में वहीं सफल कहलाता है। उसके दुश्मन लाख कोशिश करने के बाद भी उसे गिराने में सफल नहीं हो पाते।