Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Dec, 2019 07:37 AM
![hanuman temple at ratanpur chhattisgarh](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2019_12image_07_28_160502815hanumanjimain-ll.jpg)
भारत पौराणिक कथाओं से ओत-प्रोत देश है। यहां कई ऐसे स्थान हैं जिनका पौराणिक संदर्भ मौजूद है। राम कथा एकमात्र ऐसा महाग्रंथ है जिसकी उपस्थिति भारत ही नहीं, विदेशों तक मानी जाती है।
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भारत पौराणिक कथाओं से ओत-प्रोत देश है। यहां कई ऐसे स्थान हैं जिनका पौराणिक संदर्भ मौजूद है। राम कथा एकमात्र ऐसा महाग्रंथ है जिसकी उपस्थिति भारत ही नहीं, विदेशों तक मानी जाती है। रामकथा में हनुमान जी एक ऐसे पात्र हैं जिन्हें अजर-अमर माना जाता है। सामान्यत: हनुमान जी की पूजा नर वानर रूप में की जाती है परन्तु हनुमान जी के जीवन में एक प्रसंग ऐसा भी है जिसमें उन्होंने महिला का रूप धारण किया था और उनके इसी रूप की पूजा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित एक मंदिर में होती है।
यह प्रसंग लंका कांड का है जब राम और लक्ष्मण का हरण कर अहिरावण पाताल लोक ले जाता है और अपनी कुलदेवी के आगे बलि देने का निश्चय करता है। हनुमान जी सूक्ष्म रूप में एक फूल में छिपकर उस मंदिर तक पहुंच कर देवी से प्रार्थना कर उन्हें वहां से अंतर्ध्यान होने को कहते हैं और खुद देवी रूप में वहां खड़े हो जाते हैं।
![PunjabKesari Hanuman Temple At Ratanpur Chhattisgarh](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_35_174761770hanuman-2.jpg)
किंवदंतियों के अनुसार लगभग दस हजार वर्ष पहले की बात है। रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। काफी इलाज के बावजूद उन्हें इस रोग से मुक्ति नहीं मिली। परिणामत: राजा हीन भावना के शिकार हो गए। वह अक्सर सोचते कि इस रोग के रहते न मैं किसी को स्पर्श कर सकता हूं न ही किसी के साथ रमण कर सकता हूं। इस त्रास भरे जीवन से मर जाना अच्छा है। सोचेत-सोचते राजा को नींद आ गई। राजा ने सपने में देखा कि संकटमोचन हनुमान जी उनके सामने देवी के वेश में होते हुए भी लंगूर रूप में थे। उनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली और दूसरे हाथ में राम मुद्रा अंकित थी। कानों में भव्य कुंडल व माथे पर सुंदर मुकुटमाला, अष्ट सिंगार से युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से कहा, ‘‘हे राजन मैं तुमसे प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा। तुम मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें मुझे स्थापित करो। मंदिर के पीछे तालाब खुदवा कर उसमें स्नान करो और मेरी विधिवत पूजा करो। इससे तुम्हारे कुष्ठ रोग का नाश हो जाएगा।’’
![PunjabKesari Hanuman Temple At Ratanpur Chhattisgarh](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_32_016375432ramayan-hanuman.jpg)
सपने में मिले आदेश पर राजा ने विद्वानों से सलाह कर गिरजाबंध में मंदिर बनवाया। जब मंदिर पूरा हुआ तो राजा ने सोचा मूर्ति कहां से लाई जाए? एक रात स्वप्र में फिर हनुमान जी आए और कहा मां महामाया के कुंड में मेरी मूर्ति रखी हुई है। उसी कुंड से मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवाओ।
![PunjabKesari Hanuman Temple At Ratanpur Chhattisgarh](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_35_266800000lord-hanuman.jpg)
दूसरे दिन राजा अपने परिजनों और पुरोहितों के साथ देवी महामाया के दरबार में गए। वहां राजा व उनके साथ गए लोगों ने कुंड में मूर्ति की तलाश की पर उन्हें मूर्ति नहीं मिली। हताश हो राजा महल में लौट आए। संध्या आरती पूजन कर विश्राम करने लगे। मन बेचैन था कि हनुमान जी ने दर्शन देकर कुंड से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करने को कहा है और कुंड में मूर्ति नहीं मिली। इसी उधेड़बुन में राजा को नींद आ गई। राजा के सपने में फिर हनुमान जी आए और कहने लगे, ‘‘राजा! हताश न हो, मैं वहीं हूं। तुमने ठीक से तलाश नहीं किया। जाकर वहां घाट में देखो जहां लोग पानी लेते हैं, स्नान करते हैं उसी में मेरी मूर्ति पड़ी हुई है।’’
![PunjabKesari Hanuman Temple At Ratanpur Chhattisgarh](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_35_347450449hanuman-1.jpg)
राजा ने दूसरे दिन जाकर देखा तो सचमुच वह अद्भुत मूर्ति उनको घाट में मिल गई। यह वही मूर्ति थी जिसे राजा ने स्वप्र में देखा था। अष्ट शृंगार से युक्त मूर्ति के बाएं कंधे पर श्री रामलला और दाएं पर अनुज लक्ष्मण के स्वरूप विराजमान, दोनों पैरों में निशाचरों को दबाए हुए।
इस अद्भुत मूर्ति को देखकर राजा मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर विधि-विधानपूर्वक मूर्ति मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दी और मंदिर के पीछे तालाब खुदवाया जिसका नाम गिरजाबंध रख दिया। मनवांछित फल पाकर राजा ने हनुमान जी से वरदान मांगा कि हे प्रभु जो यहां दर्शन करने को आए उसके सभी मनोरथ सफल हों। इस तरह राजा पृथ्वी देवजू द्वारा बनवाया यह मंदिर भक्तों के कष्ट निवारण का केंद्र हो गया। आज भी यहां कुष्ठ रोग से पीड़ित लोग आते हैं और कुंड में डुबकी लगाते हैं।