Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Jan, 2024 08:58 AM
परिवार वह है जहां रिश्तों के कुछ अर्थ होते हैं, जहां सम्मान, आनंद, प्रेम, नाराजगी, रूठना और मनाने का महत्व होता है। पहले समाज और गांव को भी परिवार का रूप माना जाता था। आज घर वाले भी परिवार के
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Successful family Or Happy family: परिवार वह है जहां रिश्तों के कुछ अर्थ होते हैं, जहां सम्मान, आनंद, प्रेम, नाराजगी, रूठना और मनाने का महत्व होता है। पहले समाज और गांव को भी परिवार का रूप माना जाता था। आज घर वाले भी परिवार के अंग नहीं बन पा रहे हैं। छोटा परिवार सुखी परिवार नहीं होता अपितु सफल परिवार सुखी परिवार होता है। परिवार में रिश्ते की इमारत प्रेम, त्याग, सामंजस्य, विश्वास, सौहार्द, सम्मान, समझदारी, मर्यादा और मीठे व्यवहार के स्तम्भों पर खड़ी रहती है।
हमारे संबंधों के तीन मुख्य कारण हैं उपयोगिता, भावना और कर्त्तव्य। परिवार, समाज, जीवन या परस्पर संबंध जिस आधार पर टिके रहते हैं, उनका पहला सेतु है उपयोगिता। व्यक्ति हर उस वस्तु को संजोकर रखना चाहता है जिसका जीवन में उपयोग हो। हर उस व्यक्ति के भी करीब जाना चाहता है जो उसके लिए लाभकारी हो। जिसका कुछ उपयोग नहीं होता, व्यक्ति उसके साथ कभी जुड़ता ही नहीं। पुत्र अगर तीस-चालीस वर्ष की आयु तक भी कुछ काम-धंधा न करें, अर्थोपार्जन के लिए परिश्रम न करे तो वह माता-पिता के लिए भार स्वरूप नहीं हो जाता ? उपयोगिता से ही संबंधों में उपादेयता आती है।
The soul of relationships hidden in emotions भावना में छिपे रिश्तों के प्राण : जीवन का दूसरा सेतु भावना है। जब भावनाएं एक-दूसरे के निकट आती हैं, तब व्यक्ति का जुड़ाव होता है। यह न समझें कि किसी दम्पत्ति का जीवन इसलिए निभ रहा है कि उन्होंने अग्नि के समक्ष सात फेरे लिए हैं। ये तो उसी क्षण टूट जाता है, जब उनके संबंधों में भावनात्मक दूरियां स्थान बनाने लगती हैं। कोई अपने परिवार के साथ इसलिए नहीं रह/जी रहा कि वे उसके माता-पिता या संतान हैं, बल्कि वहां भावनाएं जुड़ी रहती हैं। इसी के चलते खून के रिश्ते टूट जाते हैं और इसी के चलते परस्पर संबंध प्रगाढ़ हो जाते हैं।
उपयोगिता और भावना के साथ तीसरा संबंध कर्त्तव्य का होता है। कर्त्तव्य वह दायित्व है जो हमें सबके साथ निभाना होता है। घर में रहने वाले वृद्ध माता-पिता के प्रति हमारे कर्त्तव्य होते हैं, लेकिन इसके प्रतिफल में हम कुछ नहीं चाहते, केवल अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करते हैं। उपयोगिता, भावना और कर्त्तव्य का जहां त्रिभुज होता है, वहीं परिवार का सही संचालन हो सकता है।
हम परिवार किसे कहें? एक छत के नीचे रहने वाले 10-12 लोगों के समूह को परिवार कहें ? वास्तव में प्रेम की नींव पर परिवार का निर्माण होता है। परिवार सहनशीलता और एक-दूजे के लिए त्याग व कर्त्तव्य निर्वाह से बनते हैं। जहां आपस में भावनात्मक संबंधों की आधारशिला होती है, वहीं परिवार बन जाता है। तीन भाई अलग-अलग मकानों में रहते हों लेकिन फिर भी भावनात्मक निकटता उन्हें समीप रखती है, वहीं अगर एक ही मकान में रहते हुए तीन भाई भावना से नहीं जुड़े हैं तो घर में ही उनकी दूरियां बन जाती हैं।
जिन परिवारों में भावनात्मक दूरियां पनपने लगती हैं वहां परिवार की नींव कमजोर होनी शुरू हो जाती है। जैसे- जैसे मानसिक दूरियां बनती हैं वैसे-वैसे परिवार बिखरने लगता है। आखिर ऐसा क्या हो जाता है कि एक मां-बाप के चार-पांच बेटे अलग-अलग हो जाते हैं। तेरा-मेरा शुरू हो जाता है। खून एक है लेकिन बाहर से आदमी कितना बंट जाता है। उनके अहंकार आपस में टकराने लगते हैं।
मेरे लिए तो वही घर स्वर्ग है, जहां मां-बाप के रहते हुए उसकी सारी संतानें सुबह-शाम एक साथ बैठकर भोजन करती हों और नरक वही है जहां माता-पिता के होते हुए भी सभी भाई अलग-अलग घर बसा लें और बूढ़ी मां खुद रोटियां पकाकर अपने पति को खिलाए। केवल सम्पन्नता और विपन्नता से घर स्वर्ग-नरक नहीं होता।
Children become the pride of the family संतान बने परिवार की शान : हम जिस देश की संस्कृति में जी रहे हैं, संस्कारों की धरोहर ही इसकी पहचान है। यह धरती रत्नगर्भा है। ऐसे रत्न जो पिता के वचनों की रक्षा के लिए राज सिंहासन त्यागकर वनवासी हो जाते हैं। अगर आज के जमाने में वह इतिहास दोहराया जाए तो पता है क्या होगा? पुत्र कहेगा, पिता जी वचन आपने दिए और फल मैं भोगूं और वचन भी आपने मेरी मां कौशल्या को नहीं सौतेली मां कैकेयी को दिया था, भला मैं आपकी बात क्यों पूरी करूं?
हमारा इतिहास गवाह है कि पुत्र पिता के वचनों की रक्षा करता है और एक पत्नी पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए पति के साथ चौदह वर्षों तक वन में रहती है। श्रवण कुमार अपने कंधों पर कांवड़ ढोते हुए अंधे माता-पिता को तीर्थयात्राएं करवाता है, उन्हीं की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देता है और आज के जमाने में सम्पन्न पुत्र भी अपने माता-पिता की इच्छाओं की अवहेलना, नानाविध बहाने बनाकर कर देते हैं। क्या कमाल का वह युग था, जो लाजवाब संस्कार थे। वे कितनी महान संतानें थीं और वह जीवन कितना दिव्य था।