Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Jul, 2024 11:27 AM
17 जुलाई को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे हरिशयनी, देवशयनी, विष्णुशयनी, पदमा एवं शयन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत के
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Harishyani Ekadashi Vrat Katha: 17 जुलाई को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे हरिशयनी, देवशयनी, विष्णुशयनी, पदमा एवं शयन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत के प्रभाव से लोक में भोग और परलोक में मुक्ति प्राप्त होती है। व्रत न कर सकें तो इस कथा को अवश्य पढ़ें या सुनें। कथा के प्रभाव से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
व्रत की कथा
सत्युग में मान्धाता नामक एक सत्यवादी एवं महान प्रतापी सूर्यवंशी राजा हुआ जो अपनी प्रतिज्ञा का पक्का था और अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान की भांति करता था। उसके राज्य में सभी लोग सुखी एवं खुशहाल थे। राजा वैदिक धर्म का आचरण करता था, इसी कारण उसके राज्य में न अकाल, महांमारी, सूखा, भूकम्प और अति वर्षा आदि दैविक प्रकोपों का कोई भय एवं चिंता थी। तीन वर्ष तक लगातार वर्षा न होने के कारण फसल नहीं हुई और राज्य में अकाल पड़ गया तथा यज्ञादि कार्य भी नहीं हुए व लोग अन्न के अभाव में कष्ट पाने लगे।
भूखमरी से दुखी सारी प्रजा एकत्रित होकर राजा के पास अपना दुख सुनाने लगी तथा राजा से प्रार्थना की कोई ऐसा उपाय करें ताकि वर्षा हो और फसलें पैदा हो जिससे वह अपने परिवार का पालन पोषन कर सकें। प्रजा के दुख से दुखी राजा कुछ सेना साथ लेकर वनों की तरफ चल पड़ा। वर्षा न होने के कारण का पता लगाने की इच्छा से वह अनेक ऋषियों के पास गया तथा अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि से मिला। राजा ने ऋषि अंगिरा को अपने राज्य में वर्षा न होने के बारे में बताते हुए तुरंत वर्षा होने का उपाय पूछा।
ऋषि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पदमा यानि हरिशयनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने के लिए कहा। राजा ने अपने राज्य में आकर सारी प्रजा को सच्चे भाव से देवशयनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा तथा सभी लोगों ने राजा की बात मानकर धार्मिक परम्पराओं का पालन करते हुए व्रत किया, जिसके प्रभाव से खूब वर्षा हुई और सूखी धरती सिंचित हो गई तथा खूब अन्न पैदा हुआ और सारी प्रजा सुखी हो गई। इस एकादशी के व्रत में यह कथा सुनने और सुनाने वाले सभी जीवों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है।