Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Sep, 2024 08:40 AM
प्रयागराज (प.स.): इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक हिंदू विवाह को अनुबंध की तरह भंग नहीं किया जा सकता। शास्त्र सम्मत विधि आधारित हिंदू विवाह को सीमित परिस्थितियों में ही
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प्रयागराज (प.स.): इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक हिंदू विवाह को अनुबंध की तरह भंग नहीं किया जा सकता। शास्त्र सम्मत विधि आधारित हिंदू विवाह को सीमित परिस्थितियों में ही भंग किया जा सकता है और वह भी संबंधित पक्षों द्वारा पेश साक्ष्यों के आधार पर। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनाडी रमेश की पीठ ने विवाह को भंग किए जाने के खिलाफ एक महिला की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि पारस्परिक सहमति के बल पर तलाक मंजूर करते समय भी निचली अदालत को तभी विवाह भंग करना चाहिए था जब आदेश पारित करने की तिथि को वह पारस्परिक सहमति बनी रही।
महिला ने 2011 में बुलंदशहर के अपर जिला जज द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी। अपर जिला जज ने महिला के पति की ओर से दाखिल तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी। संबंधित पक्षों का विवाह 2 फरवरी, 2006 में हुआ था। उस समय, पति भारतीय सेना में कार्यरत था। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी 2007 में उसे छोड़ कर चली गई और उसने 2008 में विवाह भंग करने के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की थी। महिला के वकील महेश शर्मा ने दलील दी कि ये सभी दस्तावेज और घटनाक्रम, तलाक के मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष लाए गए, लेकिन निचली अदालत ने महिला की ओर से दाखिल प्रथम लिखित बयान के आधार पर तलाक की याचिका मंजूर कर ली।