Hindu sanskar: संस्कारों से बड़ी कोई वसीयत नहीं होती, क्या आपने अपनी संतान को दी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Aug, 2023 10:53 AM

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सर्वकल्याण की भावना रखने वाले हमारे ऋषि बड़े तत्वदर्शी रहे हैं। उन्होंने वेदज्ञान के प्रकाश में समाज का सदैव उचित मार्गदर्शन किया है। इसके लिए

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Hindu sanskar: सर्वकल्याण की भावना रखने वाले हमारे ऋषि बड़े तत्वदर्शी रहे हैं। उन्होंने वेदज्ञान के प्रकाश में समाज का सदैव उचित मार्गदर्शन किया है। इसके लिए वे तपस्यारत रह कर सदा से अनेक शोधों में निमग्न रहे। ऋषि यानी रिसर्चर अर्थात अनुसंधानकर्ता। उन्हें वैज्ञानिक कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। उन्होंने विभिन्न शोध करके मानव जाति को बहुत कुछ दिया। प्राणीमात्र के हितार्थ ऋषियों की देनों में संस्कारों की पावन परम्परा को सर्वोच्च स्थान दिया जाना चाहिए।

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यह कहना कतई अप्रासंगिक नहीं होगा कि विश्व की किसी भी अन्य सभ्यता-संस्कृति में आध्यात्मिकता का ऐसा गूढ़ दार्शनिक समावेश नहीं मिलता, जिससे गुण सूत्र और जींस तक प्रभावित होते हों। यह तत्व चिंतन हमारी सनातन संस्कृति की संस्कार परम्परा में है जो एक सामान्य से दिखने वाले मानव के श्रेष्ठ संस्कारों की परम्परा है। इन संस्कारों ने धरती पर स्वर्ग जैसी परिस्थितियां उत्पन्न करने और बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई।

महान वैज्ञानिक हमारे ऋषियों ने मानव के जन्म पूर्व से लेकर देह के अवसान के बाद तक की विभिन्न अवस्थाओं को संस्कारों से इस तरह जोड़ा कि वे अटूट बन गईं। मानव से उनका अटूट रिश्ता बन गया। संस्कारों के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती।

ये संस्कार हमसे इस तरह जोड़ दिए गए, जिससे जीवन यात्रा में सतत् परिमार्जन एवं परिष्कार होता रहे, मानव विविध अनिष्टों व निरर्थक हानियों से बचा रहे। उसकी आत्मा पर दुर्गणों की काली छाया आत्मोत्थान से लेकर मोक्ष तक की यात्रा करने वाली रही है।
कभी गर्भाधान था प्रमुख संस्कार :

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कहते हैं कि कभी 40 संस्कार हुआ करते थे, जिनकी शुरुआत गर्भाधान संस्कार से होती थी। तब रतिक्रिया वासना के लिए नहीं, बल्कि श्रेष्ठ संतानोत्पादन के लिए होती थी। दम्पतियों को इसमें सफलता भी मिलती थी। आज की बदली स्थितियों में गर्भाधान संस्कार का स्थान रह नहीं गया। हां, पति-पत्नी निज समागम के पूर्व यह दृढ़भाव अवश्य रख सकते हैं कि हम उत्तम संतान चाहते हैं, उसे स्वस्थ एवं संस्कारी बनाने के लिए संकल्पित हैं, हम समाज व राष्ट्र को श्रेष्ठ नागरिक समर्पित करने के लिए व्रतशील होते हैं। प्रभु इसमें हमारी सहायता करें। कालांतर में इन्हें 16 संस्कारों में सीमित कर दिया गया। सभी संस्कार यज्ञ की साक्षी में हों यह व्यवस्था भी बनाई गई।

Punsavan is our first ritual पुंसवन है हमारा पहला संस्कार : पुंसवन संस्कार किसी देवी द्वारा गर्भ धारण के उपरांत होने वाला प्रथम संस्कार है, वह भी अब मान्यता खोता जैसा लग रहा है, लेकिन समाज के हितैषी लोगों द्वारा इस संस्कार की रक्षा प्रयत्नपूर्वक करनी चाहिए। इस संस्कार के द्वारा गर्भस्थ शिशु को बलिष्ठ बनाने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है।

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Childhood rituals are very important बालपन के संस्कार बेहद महत्वपूर्ण : शिशु के जन्म के उपरांत नामकरण, मुंडन, विद्यारंभ आदि के समस्त संस्कार यज्ञ के दिव्य वातावरण में सम्पन्न कराने के ऋषि निर्देश हैं। इन निर्देशों का पालन करने वाले व्यक्तियों एवं परिवारों के अनुभव बड़े ही विलक्षण हैं। इन संस्कारों के माध्यम से जीव का बहुविधि विकास होता है। अन्नप्राशन संस्कार जहां बच्चे के शारीरिक विकास की सही दिशाधारा देने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, वहीं मुंडन संस्कार विगत जन्म में जीवात्मा पर पड़ गई कुत्सित छाया दूर करने की एक परिपाटी है। बच्चे के मस्तिष्क के विकास को सही दिशा धारा देने में यह संस्कार बड़ा महत्व रखता है। विद्यारंभ संस्कार बच्चे में एक ऐसी विधा का रोपण करने वाला संस्कार है जो शिशु की आत्मा को बलिष्ठ बनाता है।

Importance of Yagyopaveet Sanskar यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व: यज्ञोपवीत संस्कार तो वास्तव में व्यक्ति को दूसरा जन्म देता है। इसका एक नाम उपनयन भी है अर्थात यह संस्कार संस्कारर्थी को दूसरी आंख प्रदान करता है। ऋषियों ने यज्ञोपवीत का प्रावधान केवल ब्राह्मणों अथवा पुरुषों के लिए ही नहीं किया, बल्कि सभी लोगों एवं महिलाओं आदि के लिए उसकी व्यवस्था दी। विभिन्न जातियों के स्वजनों द्वारा कंठी आदि धारण करना तथा बेटियों-देवियों द्वारा माला पहनना यज्ञोपवीत का ही एक अपभ्रंश रूप है। आज समाज से संस्कारों की कम हो रही महत्ता को पुनर्स्थापित करना होगा। 

 

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