Edited By Lata,Updated: 20 Jan, 2019 03:32 PM
अपने जीवन में व्यक्ति को कुछ चीज़ें इतनी प्रिय होती हैं कि वे उसे पाने के लिए हर तरह की कोशिश करता रहता है। लेकिन अगर सोचा जाए तो वह वस्तु उससे एक न एक दिन दूर हो ही जाती है।
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अपने जीवन में व्यक्ति को कुछ चीज़ें इतनी प्रिय होती हैं कि वे उसे पाने के लिए हर तरह की कोशिश करता रहता है। लेकिन अगर सोचा जाए तो वह वस्तु उससे एक न एक दिन दूर हो ही जाती है। तो आज हम आपको शुक्रनीति में बताई गई उन 6 चीज़ों के बारे में बताएंगे, जिन्हें अपने पास रखना हमेशा के लिए संभव नहीं। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में-
श्लोक-
यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।
अपने जीवन में हर कोई यहीं चाहता है कि उसका रंग-रूप हमेशा से सुंदर बना रहे और वे कभी बूढ़ा न हों। लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सकता। क्योंकि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। एक समय के बाद हर किसी की युवा अवस्था उसका साथ छोड़ती ही है। इसके लिए व्यक्ति चाहे कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन ये उसके बस की बात होती ही नहीं।
जीवन के दो ही पहलू हैं एक जन्म और दूसरा मरण जोकि मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग माने जाते हैं। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित ही है। कोई भी चाहे कितने ही पूजा-पाठ कर ले लेकिन एक समय के बाद उसकी मृत्यु होनी ही है।
बहुत से लोग ये कोशिश करते हैं कि उनका मन उनके वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन उनके वश से बाहर हो ही जाता है और वे ऐसे काम कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए। कुछ लोगों का मन धन-दौलत में होता है तो कुछ लोगों का अपने परिवार में। मन को पूरी तरह से वश में करना तो बहुत ही मुश्किल है।
कहते हैं कि मनुष्य की परछाई उसका साथ सिर्फ तब तक देती है, जब तक वह धूप में चलता है। छाया आने के बाद परछाई भी उसका साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य की अपनी छाया हर समय उसका साथ नहीं देती ऐसे में किसी भी अन्य व्यक्ति से किसी भी बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास बहुत सी धन-दौलत हो ताकि उसके जीवन में सभी सुख-सुविधाएं हों। ऐसे में कई लोग धन से अपना मोह बांध लेते हैं। वे चाहते हैं कि उनका धन हमेशा उन्हीं के पास रहें, लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं होता।
कई लोग चाहते हैं कि उन्हें हर किसी के जीवन पर अधिकार मिल जाए ताकि वे खुद ही उनके जीवन से जुड़े फ़ैसले लें। लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। जिस तरह परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी तरह पद और अधिकारों का परिवर्तन भी समय-समय पर जरूरी होता है।
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