Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jan, 2025 12:50 PM
Historical story: हिन्दुस्तान के मध्यकालीन इतिहास में एक ऐसा भी बादशाह हुआ है, जिसको अढ़ाई दिन की बादशाहत करने का मौका मिला था। बक्सर के मैदान में हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच घमासान युद्ध हुआ। लड़ाई में अपनी हार देखते हुए हुमायूं जान बचाने के लिए...
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Historical story: हिन्दुस्तान के मध्यकालीन इतिहास में एक ऐसा भी बादशाह हुआ है, जिसको अढ़ाई दिन की बादशाहत करने का मौका मिला था। बक्सर के मैदान में हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच घमासान युद्ध हुआ। लड़ाई में अपनी हार देखते हुए हुमायूं जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान से भागकर गंगा के किनारे पहुंच कर पार जाने की फिराक में था।
इसी वक्त निजाम भिश्ती अपनी मश्क में पानी भरने के लिए गंगा के किनारे आया। निजाम भिश्ती ने हुमायूं को अपनी मश्क पर लिटाया, वह खुद एक बड़ा तैराक था। उसने हुमायूं को गंगा पार कराकर उसकी जान बचा दी। बादशाह हुमायूं ने उस एहसान के बदले बड़े ईनाम देने का वायदा उससे किया। कुछ समय के बाद हुमायूं ने उसको ढूंढवाया तथा कहा, ‘‘जो चाहते हो वह मांगो, मैं तुम्हें दूंगा।’’
निजाम भिश्ती ने कहा, ‘‘हुजूर, मुझे अढ़ाई दिन, सल्तनत पर राज करने का अख्तियार दिया जाए।’’
बादशाह ने कबूल कर लिया। बादशाहत हाथ में आने के बाद निजाम भिश्ती सबसे पहले सरकारी टकसाल में गया और उसने हुक्म दिया कि धातु के सिक्कों को बंद कर दिया जाए और नए सिक्के चमड़े के बनाए जाएं। अढ़ाई दिन तक सरकारी टकसाल में चमड़े के सिक्के बनाए गए। इसी तरह चौसा का वह निजाम भिश्ती इतिहास में ‘सक्का बक्का’ के नाम से दर्ज हो गया।