Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Mar, 2025 07:23 AM

History and Significance of Holi festival: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगोत्सव होली हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। इस पर्व को उत्कर्ष तक पहुंचाने...
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History and Significance of Holi festival: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगोत्सव होली हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। इस पर्व को उत्कर्ष तक पहुंचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे ‘फाल्गुनी’ भी कहते हैं। फाल्गुन भारतीय पंचांग का अंतिम महीना है। इसकी पूर्णिमा को फाल्गुनी नक्षत्र में आने के कारण ही इस माह का नाम फाल्गुन पड़ा है। हमारे त्यौहार युगों-युगों से चली आ रही हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं, मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हमारी सनातन संस्कृति का अंतरस्पर्शी दर्शन कराते हैं।
Holi story: पुराणों में वर्णित एक कथानुसार, भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु जी के अनन्य भक्त थे। उनका पिता दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर शत्रु था। उसने पुत्र को भगवान श्रीहरि की भक्ति करते देखा तो सर्वप्रथम उसने प्रह्लाद को ऐसा करने से रोका। जब वह नहीं माने तो उसने अपने पुत्र को मारने के लिए बहुत प्रयास किए।
जब वह सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का निर्देश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गए। द्वेष और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका दहन कर प्रेम सद्भावना और हर्षोल्लास का प्रतीक होली पर्व प्रह्लाद अर्थात आनन्द प्रदान करने वाला पर्व है।

Holi of Braj ब्रज की होली
ब्रज की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण की नगरी नंदगांव, बरसाना, मथुरा, वृंदावन में रंगों की होली के साथ-साथ लट्ठमार होली भी खेली जाती है। बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।
ब्रज में होली की शुरूआत बरसाना से होती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल-बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांव बरसाने जाते हैं। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। ‘फाग’ होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है जिसमें होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और भगवान श्रीराधाकृष्ण जी के भक्तिमय प्रेम का वर्णन होता है।
प्रसिद्ध कवि रसखान श्री राधा कृष्ण जी के होली खेलने के सुन्दर तथा मनोहारी दृश्य पर बलिहारी हैं। वह कहते हैं- ‘फागुन लाग्यो जब तें तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है।’
अर्थात- जबसे फाल्गुन मास लगा है, तभी से ब्रजमण्डल में धूम मची हुई है।

होली का रंग-बिरंगा त्यौहार जितने प्रकार से 84 कोस में बसे पूरे ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है, उतने प्रकार से विश्व में कहीं नहीं मनाया जाता। ब्रज के मंदिरों में भगवान श्री राधा-कृष्ण जी के भक्त भक्ति के रंग में रंग कर गुलाल में सराबोर होकर होली खेलने आते हैं। विशेष तौर पर बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है। यहां टेसू और गुलाब के फूलों से बने रंगों की फुहारें भक्तों को भिगोती रहती हैं। बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में तो फूलों की होली खेली जाती है।
वृंदावन में रंग भरनी एकादशी से होली का विशेष शुभारंभ हो जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का गुलाल से पूजन होता है। साथ ही वृंदावन की परिक्रमा देने के लिए भक्त आते हैं और पूरी परिक्रमा में रंग और गुलाल उड़ता है।

Holashtak होलाष्टक
होली से पहले आठ दिनों के समय को ‘होलाष्टक’ कहा जाता है जब सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। मान्यता के अनुसार होलिका दहन से पहले आठ दिनों तक प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रताड़ित किया था। दूसरी कथा के अनुसार फाल्गुन मास की अष्टमी को ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था और इस कारण से पूरी प्रकृति शोक में डूब गई थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने कामदेव को अगले जन्म में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। इन्हीं कारणों से हमारे धर्मशास्त्रों में होलाष्टक की अवधि को शुभ कार्यों के लिए उचित नहीं माना जाता।
