Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Mar, 2025 10:09 AM

Holika Dahan 2025: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगों तथा हंसी-खुशी का पर्व होली भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्यौहार है। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व होली वसंत का संदेशवाहक भी है। इस पर्व को...
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Holika Dahan 2025: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगों तथा हंसी-खुशी का पर्व होली भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्यौहार है। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व होली वसंत का संदेशवाहक भी है। इस पर्व को खास बनाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे कलेवर के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली पर खेतों में गेहूं की बालियां भी पक कर लहराती हुई किसान की खुशी में वृद्धि कर देती हैं। पौराणिक ग्रंथों में खेत से प्राप्त नए अनाज (नवान्न) को यज्ञ में हवन करके ग्रहण किए जाने का उल्लेख मिलता है। ऐसा अन्न ‘होला’ कहलाता है।
Holika Dahan Katha: होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है। भक्त प्रह्लाद, पुराणों में वर्णित एक कथा अनुसार, भगवान विष्णु जी के अनन्य भक्त थे। उनका पिता हिरण्यकश्यप दैत्यों का राजा था। वह भगवान विष्णु का घोर शत्रु था। जब उसने अपने पुत्र को भगवान श्री हरि जी की भक्ति करते देखा तो सर्वप्रथम उसने प्रहलाद को ऐसा करने से रोका। जब वह नहीं माने तो उसने अपने पुत्र को मारने के लिए बहुत प्रयास किए।
जब हिरण्यकश्यप सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का निर्देश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परंतु प्रहलाद बच गए। द्वेष और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका दहन कर प्रेम सद्भावना और हर्षोल्लास का प्रतीक होली पर्व ‘प्रह्लाद’ अर्थात आनन्द प्रदान करने वाला है। मान्यता है की जो भक्त होलिका दहन के दिन इस कथा का श्रवण करता है, उसके घर में सदैव खुशहाली वास करती है।
भगवान श्री कृष्ण जी श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं कि ‘अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।’ -‘‘जो सब में द्वेष भाव से रहित है, जो सबका मित्र है जिसके हृदय में सबके प्रति करुणा है, ऐसा भक्त मुझको प्रिय है।’’

Braj ki holi: ब्रज की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण की नगरी नंदगांव, बरसाना, मथुरा, वृंदावन में रंगों की होली के साथ-साथ लट्ठमार होली भी खेली जाती है। बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। ब्रज में होली की शुरुआत बरसाना से होती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांव बरसाना जाते हैं। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से भी लोग वहां आते हैं। फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है। फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है।
Mathura Holi 2025: प्रसिद्ध कवि रसखान श्री राधा-कृष्ण जी के होली खेलने के सुन्दर तथा मनोहारी दृश्य पर बलिहारी हैं। वह कहते हैं : फागुन लाग्यो जब तें तब तें ब्रजमंडल में धूम मच्यौ है।
अर्थात-जबसे फाल्गुन मास लगा है तभी से ब्रजमण्डल में धूम मची हुई है।
मीरा अपनी सखी से कहती हैं :
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।
होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी, री।।
उड़त गुलाल लाल बादला रो रंग लाल।
पिचकां उडावां रंग रंग री झरी, री।।
हे सखी! मैंने अपने प्रियतम कृष्ण के साथ रंग से भरी, प्रेम के रंगों से सराबोर होली खेली। होली पर इतना गुलाल उड़ा कि उससे बादलों का रंग भी लाल हो गया। रंगों से भरी पिचकारियों से रंग-रंग की धाराएं बह चलीं।

गोस्वामी तुलसीदास की कृति ‘गीतावली’ में द्वार पर एकत्र अयोध्यावासियों के साथ श्रीराम के प्रसन्नतापूर्वक होली खेलने का आह्वान है-
‘खेलहुं मुदित नारि-नर, बिहंसि कहेउ रघुबीर।’
नगर नारि-नर हर्षित, सब चले खेलन फागु।
देखि राम छबि अतुलित, उमगत उर अनुरागु।’
नि:सन्देह होली पर्व सामाजिक कुरीतियों से बचने तथा अपनी दुष्प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने के संकल्प का संदेश देता है। यह ईर्ष्या, द्वेष तथा भेदभाव का परित्याग करने का, आपसी प्रेम-सौहार्द की प्रेरणा प्रदान करने वाला तथा ईश्वरीय प्रेम के साथ आध्यात्मिक उन्नति का पर्व है।
