Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Mar, 2025 08:18 AM
Home Sutra: हमारे धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है और इसके रचयिता राजर्षि मनु के विचार भारतीय मनीषा में सर्वमान्य हैं। माता-पिता, गुरुजनों एवं श्रेष्ठजनों को सर्वदा प्रणाम, सम्मान और सेवा करने के संदर्भ में मनुस्मृति का...
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Home Sutra: हमारे धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है और इसके रचयिता राजर्षि मनु के विचार भारतीय मनीषा में सर्वमान्य हैं। माता-पिता, गुरुजनों एवं श्रेष्ठजनों को सर्वदा प्रणाम, सम्मान और सेवा करने के संदर्भ में मनुस्मृति का अधोलिखित श्लोक बड़ा ही अनुकरणीय है : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्।।
अर्थात वृद्धजनों यथा माता-पिता, गुरुजनों एवं श्रेष्ठजनों को सर्वदा अभिवादन प्रणाम तथा उनकी सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल-ये चारों बढ़ते हैं।
Manusmriti: मनुस्मृति के एक अन्य श्लोक में माता-पिता और आचार्य को अति महत्वपूर्ण स्थान देते हुए कहा गया है कि दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है-सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से हजार गुना बढ़कर माता गौरवमयी होती है। माता-पिता को संतुष्ट रखना परम धर्म है
तैत्तिरीयोपनिषद् में कहा गया है : ‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्य देवो भव’ अर्थात माता-पिता और आचार्य को देवता मानो। ये तीनों प्रत्यक्ष ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। इन्हें सदैव संतुष्ट और प्रसन्न रखना हमारा परम धर्म है।
माता-पिता के समान श्रेष्ठ कोई नहीं गरुड़ पुराण में कहा गया है कि माता-पिता के समान श्रेष्ठ अन्य कोई देवता नहीं है। सदैव सभी प्रकार से हमें अपने माता-पिता की पूजा और सेवा करनी चाहिए।

Ramayana: श्री वाल्मीकी रामायण में भगवान श्री राम सीता जी से कहते हैं कि जिनकी सेवा से अर्थ, धर्म और काम तीनों पुरुषार्थों की सिद्धि होती है, जिनकी आराधना से तीनों लोकों की प्राप्ति होती है, उन माता-पिता के समान पवित्र इस संसार में दूसरा कोई भी नहीं है इसलिए लोग इन प्रत्यक्ष देवताओं की आराधना करते हैं।

Mahabharat: महाभारत में भीष्म पितामह, राजा युधिष्ठिर को धर्म का उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘‘राजन! समस्त धर्मों से उत्तम फल देने वाली माता-पिता और गुरु की भक्ति है। मैं सब प्रकार की पूजा से इनकी सेवा को बड़ा मानता हूं। इन तीनों की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
पद्म पुराण (सृष्टि खंड) में कहा गया है :
सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत।।
अर्थात माता सर्वतीर्थमयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों दीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है।

माता-पिता की 100 वर्ष की सेवा भी काफी नहीं
गणेश जी द्वारा माता पार्वती और पिता महादेव की परिक्रमा करने के कारण ही वह माता-पिता के लाडले बने और अग्रदेव विघ्न विनाशयक के रूप में घर-घर पूजे जाते हैं।
शास्त्र कहता है कि माता-पिता अपनी संतान के लिए जो कष्ट सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि 100 वर्ष तक माता-पिता की सेवा करे तब भी वह उनसे उऋण नहीं हो सकता। श्री रामचरित मानस में भगवान श्री राम अनुज लक्ष्मण को माता-पिता और गुरु की आज्ञा पालन का फल बताते हुए कहते हैं कि जो लोग माता-पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही शिरोधार्य कर पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ प्राप्त किया है। अन्यथा जगत में जन्म लेना ही व्यर्थ है।
परब्रह्म के समान गुरुतत्व
धर्मग्रंथों में गुरुतत्व परब्रह्म के समान बताते हुए उसकी अपार महिमा का वर्णन किया गया है।
गुरु ही हमें ईश्वर से मिलने का मार्ग बताता है। वह हमें असत से सत की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर और मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने का कार्य करता है।
हमारे धर्मशास्त्रों में माता-पिता और गुरुजनों का निरादर करने, उनकी बातों की अवहेलना करने और उन्हें दुख पहुंचाने वालों की तीव्र भर्तसना की गई है। जो माता-पिता और आचार्य का अपमान करता है, वह उसका फल भोगता है।
