क्यों एक राक्षस के नाम पर रखा गया इस पावन तीर्थ का नाम ?

Edited By Jyoti,Updated: 15 May, 2019 12:08 PM

how did gaya become due to demon gaysur place of salvation

हिंदू धर्म में पितृ को खुश करना बहुत ही ज़रूरी माना जाता है। इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष मनाया जाता हैं, जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।

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हिंदू धर्म में पितृ को खुश करना बहुत ही ज़रूरी माना जाता है। इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष मनाया जाता हैं, जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा और उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पूर्वजों को याद करने के साथ उन्हें श्रद्धा के साथ पिंडदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यही कारण है कि श्राद्ध के समय में कई तीर्थों स्थलों पर लोग अपने पितरों के लिए पिंडदान करता है। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में विभिन्न तीर्थों पर पितृ पूजा की जाती है और पावन नदियों में स्नान किया जाता है। आज हम एक ऐसे ही स्थान के बारे में जहां पितृ तर्पण तो किया जाता है मगर इस स्थान से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्यता नहीं पता होगी।
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हम बात कर रहे हैं हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल गया की, जहां से लोग दूर-दूर से अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं। लेकिन उनमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे इस स्थान के नाम के पीछे का असली कारण पता होगा। दरअसल पावन तीर्थ स्थल कहा जाने वाले गया का नाम एक असुर के नाम से पड़ा था। जी हां, आपको जानकर शायद हैरानी होगी लेकिन गया का नाम गायसुर नामक एक राक्षस से पड़ा था।

पुराणों के अनुसार गया प्राचीन समय में एक राक्षस था जिसका नाम गायसुर था। मान्यता है कि तपस्या के कारण वरदान मिला था कि जो भी उसे देखेगा या उसका स्पर्श करेगा उसे यमलोग नहीं जाना पड़ेगा, ऐसा व्यक्ति सीधे विष्णुलोक जाएगा। मान्यता है कि इस वरदान के कारण यमलोग सुना रहने लगा। परेशान होकर यमराज ने जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को बताया कि गायसुर के इस वरदान के कारण अब पापी व्यक्ति भी वैकुंठ जाने लगे हैं। इसलिए कोई उपाय कीजिए, जिससे ये सब बंद हो सके। कहते हैं यमराज की स्थिति को समझते हुए तब ब्रह्मा जी ने गायसुर से कहा कि तुम परम पवित्र हो इसलिए देवता चाहते हैं कि हम आपकी पीठ पर यज्ञ करें।
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गायसुर इसके लिए तैयार हो गया। जिसके बाद गायसुर की पीठ पर सभी देवता स्थित हो गए। गायसुर के शरीर को स्थिर करने के लिए देवताओं द्वारा उनकी पीठ पर एक बड़ा सा पत्थर रखा गया। कहते हैं आज यह पत्थर प्रेत शिला कहलाता है।

मान्यता के अनुसार गायसुर के इस समर्पण से विष्णु भगवान ने उसे वरदान दिया कि अब से यह स्थान जहां उसके शरीर पर पत्थर रखा गया वह गया के नाम से जाना जाएगा। साथ ही यहां पर पिंडदान और श्राद्ध करने वाले को पुण्य और पिंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्ति मिल जाएगी। कहा जाता है कि यही कारण है जो गया को मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है।
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