Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jul, 2023 07:10 AM
सभी शुभ अवसरों पर तथा सभी धार्मिक क्रियाओं में सबसे पहले श्री गणेश के पूजन का विधान है। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: श्री गणेश का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्री गणेश का
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Story of Lord Ganesha: सभी शुभ अवसरों पर तथा सभी धार्मिक क्रियाओं में सबसे पहले श्री गणेश के पूजन का विधान है। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: श्री गणेश का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्री गणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। मान्यता है कि श्री गणेश के नाम स्मरण मात्र से ही निर्विघ्न कार्य संपन्न हो जाते हैं। भगवान गणेश प्रथम पूज्य बनें, यह भी माता-पिता के आशीर्वाद से ही संभव हुआ।
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इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। समस्त देवों में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि धरती पर सबसे पहले किस देवी-देवता की पूजा होनी चाहिए। प्रथम पूजा का अधिकार पाने के लिए समस्त देवी देवता स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे। जब कोई भी समाधान न निकला तो इस गुत्थी को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने भगवान भोले नाथ की शरण में जाने को कहा
भगवान भोले नाथ ने सभी देवी-देवताओं के विचार जानने के उपरांत एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और कहा," जो देवी-देवता अपने वाहन पर सवार हो कर पृथ्वी की परिक्रमा करके सर्वप्रथम वापिस लौटेगा वे ही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। "
भोले नाथ के इतना कहते ही समस्त देवी-देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर निकल गए मगर गणेश जी वहीं खड़े रहे और चुपके से एकांत में चले गए। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया।
जो ध्यान करते हैं, शांत बैठते हैं, उन्हें अंतर्यामी परमात्मा सत्प्रेरणा देते हैं। अत: किसी कठिनाई के समय घबराना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का ध्यान करके थोड़ी देर शांत बैठो तो आपको जल्द ही उस समस्या का समाधान मिल जाएगा।
फिर गणेश जी अपने माता-पिता की परिक्रमा करने लगे। शिव-पार्वती ने पूछा,"आप पृथ्वी की परिक्रमा करने की बजाय हमारी परिक्रमा क्यों कर रहे हैं?
गणेश जी बोले," मेरे लिए मेरा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मेरे माता-पिता ही हैं इसलिए मैंने यथार्थ ब्रह्माण्ड की परिक्रमा की है।"
उन्होंने माता-पिता की प्रदक्षिणा करके ही अग्रपूजा का अधिकार प्राप्त किया।
शिव-पुराण में आता है, "पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति य:। तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।।"
" जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है।"
माता-पिता के आशीर्वाद में इतनी ताकत है कि वह साधारण को भी आसाधरण योग्यता और सम्मान दिला सकती है। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा है। मां-बाप की सेवा व सम्मान करने पर ही स्वर्ग में जगह मिलती है। मां जो प्रार्थनाएं करती है वे साधारण नहीं होतीं। दुनिया में मां की ममता और पिता की सुरक्षा की कोई बराबरी नहीं। भगवान के प्रति भी मनुष्य ने जो संबोधन दिए उनमें कहा, तू ही माता है, तू ही पिता है, बंधु है, सखा है। मां-बाप सबसे महान हैं, उन्हें आदर-सम्मान देना सीखें। बड़ों का आशीर्वाद और छाया मिलती रहे तो सौभाग्य जागता है।