Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Sep, 2024 08:55 PM
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक के 16 दिन पितृपक्ष के नाम से जाने जाते हैं। इन 16 दिनों में लोग अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखकर धार्मिक कर्म करते हैं। पितृ के निमित्त पितृ पक्ष में धार्मिक कर्म
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Things You Must Keep In Mind While Performing Shradh: भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक के 16 दिन पितृपक्ष के नाम से जाने जाते हैं। इन 16 दिनों में लोग अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखकर धार्मिक कर्म करते हैं। पितृ के निमित्त पितृ पक्ष में धार्मिक कर्म उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्धकर्म करके सम्पन्न किए जाते हैं। जो लोग पितृ के निमित श्रद्धा न रखकर श्राद्धकर्म नहीं करते, पितृगण उनसे नाराज होकर उन्हें श्रापित भी करते हैं, आम भाषा में इस श्राप को पितृदोष कहा जाता है।
सनातन धर्म के दार्शनिक शास्त्रों में वर्णित है कि मृत्यु अनन्त जीवन शृंखला की एक कड़ी मात्र है। मृत्यु के बाद भी जीवन समाप्त नहीं होता वरन आत्मा एक जन्म पूरा करके अगले जीवन की ओर अग्रसर होती है। जीवात्मा के उत्थान हेतु ही मृत प्राणी के वंशज श्रद्धा के साथ जिस मरणोत्तर संस्कार को करते हैं, उसी को श्राद्धकर्म कहा जाता है। श्राद्ध अपने पितृ के निमित वंशज की श्रद्धा है। वैदिक धर्मानुसार प्रत्येक व्यक्ति तीन प्रकार के ऋण साथ लेकर पैदा होता है, पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण व तीसरा पितृ ऋण।
पितृ पक्ष में श्राद्धकर्ता को पान खाना, तेल लगाना, क्षौरकर्म, मैथुन व पराया अन्न खाना, यात्रा करना, क्रोध करना वर्जित है।
श्राद्ध कर्म में हाथ में जल, अक्षत, चन्दन, फूल व तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लेना आवश्यक है।
श्राद्ध कर्म में चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, बासी, अपवित्र फल या अन्न निषेध माने गए हैं।
श्राद्ध कर्म में पितृ की पसंद का भोजन जैसे दूध, दही, घी व शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर बनाने चाहिए।
श्राद्ध कर्म में तर्पण आवश्यक है इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितृों को तृप्त किया जाता है।
श्राद्ध कर्म में ब्राह्मण भोज के समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए।
श्राद्ध कर्म में गंगा जल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश, तिल और तुलसी पत्र का होना महत्वपूर्ण है।
श्राद्ध कर्म में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है।
श्राद्ध कर्म में गाय का दूध, घी व दही ही प्रयोग में लेना चाहिए। भैंस-बकरी इत्यादि का दूध वर्जित माना गया है।
श्राद्ध कर्म में लोहे का उपयोग किसी भी रूप में अशुभ माना जाता है।
ब्राह्मण को मौन रहकर व व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर भोजन करना चाहिए।
श्राद्ध कर्म तिल का होना आवश्यक है, तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।
श्राद्ध कर्म में कुशा का होना आवश्यक है, कुशा श्राद्ध को राक्षसों से बचाती है।
श्राद्ध कर्म में जल में काले तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करना चाहिए।