Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jul, 2024 08:42 AM
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी हरिशयनी, देवशयनी, पदमा, शयन और विष्णु-शयनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान के उच्च कोटि के भक्त, भगवान की प्रसन्नता के
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Devshayani Ekadashi Vrat Katha: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी हरिशयनी, देवशयनी, पदमा, शयन और विष्णु-शयनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान के उच्च कोटि के भक्त, भगवान की प्रसन्नता के लिए बड़ी श्रद्धा से एकादशी व्रत का पालन करते हैं। व्रत करने के बदले वे भगवान से सांसारिक सुख, स्वर्ग सुख, योग सिद्धि तथा मोक्ष आदि की अभिलाषा को छोड़कर केवल हरि-भक्ति व हरि-सेवा ही मांगते हैं।
Devshayani Ekadashi puja vidhi: देवशयनी एकादशी पूजा विधि
देवशयनी एकादशी व्रत की शुरूआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए। भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए।
इस व्रत को करने से समस्त रखने वाले व्यक्ति को अपने चित्त, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
Harshini Ekadashi vrat katha: हरिशयनी एकादशी व्रत कथा
सत्युग में मांधाता नामक एक सत्यवादी एवं महान प्रतापी सूर्यवंशी राजा हुआ जो अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान की भांति करता था, सभी लोग सुखी एवं खुशहाल थे। तीन वर्ष तक लगातार वर्षा न होने से उसके राज्य में अकाल पड़ गया। यज्ञादि कार्य भी नहीं हुए व लोग अन्न के अभाव में कष्ट पाने लगे। दुखी राजा मांधाता कुछ सेना साथ लेकर वनों की तरफ चल पड़ा। वर्षा न होने के कारण का पता लगाने की इच्छा से वह अनेक ऋषियों के पास गया तथा अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि से मिला और तुरंत वर्षा का उपाय पूछा। ऋषि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा यानि हरिशयनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने के लिए कहा। राजा ने सच्चे भाव से व्रत किया, जिसके प्रभाव से खूब वर्षा हुई तथा अन्न उपजनेे से सारी प्रजा सुखी हो गई।