Edited By Jyoti,Updated: 18 Feb, 2020 11:36 AM
यह घटना उस समय की है जब इब्राहिम गार्दी मराठा तोपखाने के सेनापति थे। वह तन-मन से मराठों के साथ युद्धभूमि में जुटे हुए थे।
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यह घटना उस समय की है जब इब्राहिम गार्दी मराठा तोपखाने के सेनापति थे। वह तन-मन से मराठों के साथ युद्धभूमि में जुटे हुए थे। एक रात शिविर में चुपके से एक सैनिक आया और उन्हें सलाम कर बोला, ''हुजूर, मैं एक सच्चा मुसलमान और बादशाह अहमद शाह अब्दाली का दूत हूं। उनकी ओर से आपके लिए एक पैगाम लेकर आया हूं। यदि आपकी आज्ञा हो तो कहूं?"
इब्राहिम गार्दी हैरानी से उस सैनिक को देख कर आवेश में बोले, ''क्या कहना चाहते हो?"
सैनिक बोला, ''हुजूर, यदि आप युद्ध में इस्लाम की खातिर अहमद शाह अब्दाली का साथ देंगे तो आप न सिर्फ अपने मजहब की खिदमत करेंगे, बल्कि ऊंचे ओहदे, बड़ी जागीर और अतुल्य धन-दौलत से भी नवाजे जाएंगे। फिलहाल उनकी ओर से यह मामूली तोहफा कबूल करें।"
यह कहकर उसने अशर्फियों से भरा एक थैला इब्राहिम गार्दी के पैरों के पास रख दिया।
आगंतुक की बातें सुनकर इब्राहिम आग बबूला हो गए और गरज कर उस सैनिक से बोले, ''यदि तुम दूत नहीं होते तो तुम्हारा सिर तुरंत कलम कर दिया जाता। तुम सिर्फ मुल्क के ही नहीं दीन के भी दुश्मन हो। मुझे एक विदेशी लुटेरे अब्दाली का साथ देने के लिए यह तुच्छ तोहफा दे रहे हो। अरे, उसमें तो इंसानियत नाम की कोई चीज ही नहीं है। उस बेरहम ने न जाने कितने निर्दोष नर-नारियों और बच्चों का बड़ी निर्दयता से कत्ल करवाया है। तुम इसे मजहब की खिदमत कहते हो? अपने वतन के साथ गद्दारी करने को मैं अपने धर्म के साथ गद्दारी करना मानता हूं।
"यह कहकर वह अपनी म्यान से तलवार निकालते हुए दूत से बोले, ''उठा ये नापाक अशर्फियों! इसके पहले कि यह तलवार तुझ पर बिजली बनकर गिरे, मेरी नजरों के सामने से दफा हो जा।"
इब्राहिम की देशभक्ति की भावना देखकर दूत वहां से दफा हो गया।