Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Jul, 2024 08:57 AM
सत्य की खोज में निकले एक युवक को अपने गांव से बाहर पांव रखते ही एक फकीर दिखाई दिया। फकीर एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। युवक ने फकीर को कहा, ‘‘बाबा मैं सत्य की खोज में निकला हूं। इसमें मदद के लिए
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सत्य की खोज में निकले एक युवक को अपने गांव से बाहर पांव रखते ही एक फकीर दिखाई दिया। फकीर एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। युवक ने फकीर को कहा, ‘‘बाबा मैं सत्य की खोज में निकला हूं। इसमें मदद के लिए मुझे एक सच्चे गुरु की जरूरत है। क्या आप मुझे बताएंगे कि मैं अपने गुरु की पहचान कैसे करूं?’’
फकीर ने सच्चे गुरु का रूप बताया। फकीर ने कहा, ‘‘तुझे सच्चा गुरु किसी पेड़ के नीचे, आसन पर बैठा, इशारे करता दिखाई देगा। यह सब देखते ही जान जाना कि यही सच्चा गुरु है।’’
युवक अपनी खोज में निकल पड़ा। 30 वर्ष गुजर गए। युवक हजारों मील की यात्रा करके सैंकड़ों गुरुओं को मिला मगर उसे फकीर के बताए हुए रूप वाला गुरु कहीं नहीं मिला। आखिरकार थक-हार कर वह अपने गांव वापस लौट आया। गांव के बाहर युवक उसी फकीर को देख कर दंग रह गया। फकीर उसी पेड़ के नीचे आसन पर बैठ कर इशारे कर रहा था। अरे, यह तो बिल्कुल वही रूप वाला गुरु है जिसके बारे में मुझे खोज करते-करते 30 वर्ष गुजर गए।
युवक भाग कर फकीर के कदमों में गिर पड़ा। वह बोला, ‘‘गुरुदेव, आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं 30 वर्षों से भटकता रहा जबकि आप मुझे गांव के बाहर कदम रखते ही मिल गए थे। आपने कहा क्यों नहीं कि आप ही मेरे सच्चे गुरु हैं ?’’
बूढ़े फकीर ने जवाब दिया, ‘‘मैं तो कह ही रहा था मगर तुम सुनने को तैयार ही नहीं थे। तुमने तो दुनिया में भटकने के बाद ही घर लौटना था।’’
‘‘अपने ही घर लौटने के लिए तूने हजारों दरवाजों पर दस्तक जो देनी थी। मैं तो कह ही रहा था कि एक पेड़ के नीचे एक आसन पर बैठा होगा सच्चा गुरु।’’
‘‘मैं अब भी उसी आसन पर बैठा हुआ हूं जिसका वर्णन मैंने किया था। वास्तव में तुम इतनी हड़बड़ाहट में थे कि खोजने के चक्कर में सामने नजर आती सच्चाई को ही तुम भुला बैठे। चलो, अच्छा हुआ तुम आ गए। मैं एक ही आसन पर बैठा-बैठा थक गया हूं।’’
‘‘तुम 30 वर्षों तक भटकते रहे और मैं इस पेड़ के नीचे जैसे का जैसा बैठा रहा। मुझे उम्मीद है कि तुम एक दिन लौटोगे। मैं मर भी सकता था, तुमको भटकना पड़ा, इसमें तेरी अपनी ही गलती है। तुम्हारा गुरु तो तुमको पहले ही मिल चुका था।’’
ऐसा अक्सर होता है। हम नजदीक देख नहीं सकते। दूर के ढोल हमें सुहाने लगते हैं। हम उनकी और खिंचे चले आते हैं। निकट ही बजती बांसुरी हमें सुनाई नहीं देती।