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Indian Rebellion of 1857: 1857 में दहकी ‘चिंगारी ने शोला बन’ देश को आजाद कराया

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 May, 2023 09:01 AM

indian rebellion of 1857

आज से 166 वर्ष पहले 10 मई, 1857 को मेरठ से दहकी चिंगारी निरंतर सुलगती रही और आजादी के व्यापक आंदोलन का शोला बन कर

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Indian Rebellion of 1857: आज से 166 वर्ष पहले 10 मई, 1857 को मेरठ से दहकी चिंगारी निरंतर सुलगती रही और आजादी के व्यापक आंदोलन का शोला बन कर 90 वर्ष बाद 15 अगस्त, 1947 को देश को अंगेजों की गुलामी से आजाद कराने का बड़ा माध्यम बनी। इस दिन को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया।  

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इतिहासविद् के.के. शर्मा का मानना है कि अंग्रेजों के विरोध में आमजन के मन में आक्रोश पनप रहा था और आगे चलकर इसी आक्रोश ने क्रांति को जन्म दिया। तब क्रांति ने एक तरह से समाज को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया। क्रांति शुरू होने के लिए चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग के साथ कई अन्य कारण भी थे। यही कारण रहा कि क्रांति शुरू होते ही इसे आमजन का पूरा समर्थन मिला था।

विविध कारणों से उत्पन्न यह संग्राम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का बीज सिद्ध हुआ, निरंतर धधकती हुई इसकी चिंगारी को हवा मिलती रही और विशाल जन आंदोलन का रूप लेकर अंतत: देश को स्वाधीनता दिलाने का बड़ा माध्यम बना।
 
क्रांति का सबसे सशक्त पक्ष यह रहा कि राजा-प्रजा, हिन्दू-मुसलमान, जमींदार-किसान, पुरुष-महिला सभी एकजुट होकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। महान क्रांतिकारियों ने अपने शौर्य और पराक्रम के दम पर घोर संघर्ष कर अपने बलिदान से ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया।

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भारत की परम्परा, रीति-रिवाज और संस्कृति के विपरीत, अंग्रेजी सत्ता एवं संस्कृति सुदृढ़ होने, भारतीय राजाओं के विरुद्ध अन्यायपूर्ण कार्रवाई, अंग्रेजों की हड़पने की नीति, भारतीय जनमानस की भावनाओं का दमन एवं अतीत में अनेक घटनाओं और उपेक्षापूर्ण व्यवहार से राजाओं, सैनिकों व जनमानस में विद्रोह के स्वर मुखरित होने जैसे अनेक कारणों के साथ-साथ इस क्रांति का तात्कालिक कारण राजनीतिक रहा।

क्रांति दिवस से पूर्व  8 अप्रैल को मंगल पांडे को फांसी देने,  9 मई को राइफल चलाने के लिए चर्बी लगे कारतूसों का विरोध करने वाले 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर जेल भेजे जाने और कई प्रकार की अफवाहों ने आग में घी का काम किया।
 
इन सब घटनाओं से उद्वेलित क्रांतिकारियों ने 10 मई, 1857 को क्रांति का बिगुल फूंक दिया। अमर शहीद कोतवाल धन सिंह गुर्जर की इसमें महत्वपूर्ण  भूमिका रही। इस दिन उनके आदेश पर हजारों की संख्या में भारतीय क्रांतिकारी रातों-रात मेरठ पहुंचे थे। अंग्रेजों के विरुद्ध  बगावत की खबर मिलते ही आस-पास के गांवों के हजारों ग्रामीण भी मेरठ के सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह पुलिस चीफ के पद पर तैनात थे।
 
धन सिंह ने अपनी योजना के अनुसार अत्यंत चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिसकर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया। देर रात 2 बजे धन सिंह के नेतृत्व में केसरगंज मंडी स्थित जेल तोड़कर 836 कैदियों को आजाद कराकर जेल को आग लगा दी गई। सभी कैदी क्रांति में शामिल हो गए।
 
इसके बाद क्रांतिकारियों ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत से जुड़ी हर चीज को तबाह कर दिया। सुबह होने पर क्रांतिकारी दिल्ली के लिए कूच कर 11 मई को लाल किले पर जा पहुंचे और दिल्ली पर कब्जा करके मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को देश का सम्राट घोषित कर दिया।

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उसके बाद अन्य शहरों में भी क्रांति फैल गई। क्रांति शुरू होते ही बहसूमा व परीक्षितगढ़ पर राजा कदम सिंह व गुर्जर क्रांतिकारियों ने कब्जा कर लिया था। ऐसे ही हापुड़ से बुलंदशहर तक क्षेत्र पर मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान के साथ राजपूत, गुर्जर व पठानों ने विद्रोह कर दिया।

बुलंदशहर के काला आम चौराहे स्थित बाग में कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। मुरादनगर व मोदीनगर में भी लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में साथ दिया। मुजफ्फरनगर व शामली के संपूर्ण क्षेत्र क्रांति की गतिविधियों से जुड़े हुए थे। सहारनपुर में भी किसानों ने क्रांति में खूब बढ़कर भागीदारी की।
 
4 जुलाई, 1857 को कोतवाल धन सिंह गुर्जर को क्रांति का जिम्मेदार मानते हुए फांसी दी गई व गांव पांचली खुर्द में अंग्रेजों द्वारा हमला कर किसानों को तोपों से उड़ा दिया गया। मंगल पांडे, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, बेगम हजरत महल, बाबू कुंवर सिंह, मौलवी अहमदुल्ला और अजीमुल्ला खां जैसे अनेक क्रांतिकारियों ने प्राण न्यौछावर कर दिए और भारतीय इतिहास में अमर हो गए।
 
बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में आजादी के लिए लड़ा गया यह संग्राम असफल हो गया परंतु स्वतंत्रता की चिंगारी भड़का गया। अंग्रेजों के विरुद्ध पहली चुनौती के रूप में यह संग्राम भले ही गुलामी से मुक्ति न दिला पाया हो, लेकिन भारतीयों की आंखों में स्वतंत्रता पाने का सपना बलवती हो चुका था।

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