Edited By Jyoti,Updated: 01 Nov, 2020 02:59 PM
साई बाबा शिरडी की एक मस्जिद में रहते थे। वे मस्जिद को ‘द्वारिका माई’ कहते थे। हिंदू तथा मुसलमान सभी वर्गों के लोग साई बाबा के भक्त थे।
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साई बाबा शिरडी की एक मस्जिद में रहते थे। वे मस्जिद को ‘द्वारिका माई’ कहते थे। हिंदू तथा मुसलमान सभी वर्गों के लोग साई बाबा के भक्त थे। वे सबको अपने-अपने विश्वास के अनुसार पूजा-उपासना करने की प्रेरणा देते थे। एक दिन बाबा जंगल से गुजर रहे थे कि उन्होंने एक कुष्ठ रोगी को देखा। बाबा का हृदय उसकी पीड़ा को देखकर द्रवित हो उठा। भागोजी नामक उस कोढ़ी का उन्होंने हाथ पकड़ा और मस्जिद में ले आए। उसे अपने हाथों से नहलाया, उसके गलित अंगों को साफ कर मल्हम लगाया तथा रोटी खिलाकर एक बिस्तर पर लिटा दिया।
शाम को कुछ लोग नमाज अदा करने पहुंचे तो उन्होंने मस्जिद में कोढ़ी को देखते ही नाक-भौं सिकोड़ी। एक नमाजी ने पूछा, ‘‘इसे यहां किसने आने दिया है?’’
साई बाबा बोले, ‘‘मैं अपने साथ लेकर आया हूं।’’
साई बाबा ने नमाजियों को समझाया, ‘कुरान में लिखा है कि दुखी तथा रोगी की सेवा से सबाब (पुण्य) मिलता है, खुदा खुश होता है। मैं इसका इलाज तथा सेवा करने के लिए यहां लाया हूं। यदि तुम इससे घृणा करोगे तो नमाज और इबादत से कुछ हासिल नहीं कर पाओगे।’
साई बाबा ने कुछ ही शब्दों में नमाजियों को रोगी की सेवा के सबाब से परिचित करा दिया था।
—शिव कुमार गोयल